
सम्मेद शिखर पारसनाथ और पवित्र मरांग बुरु पर्वत का विवाद अपने चरम पर है. जैन समुदायों का आंदोलन खत्म हो गया है. मगर अब आदिवासी समाज भी अपने अधिकार के लिए आंदोलन के मूड में है. आज जेएमएम विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने चेतावनी दी कि अगर इस मामले का हल जल्द नहीं निकला तो वे 30 जनवरी को उलिहातू में अनशन पर बैठ जाएंगे. इधर, पारसनाथ विवाद का कल अहम् दिन है. अंतरराष्ट्रीय संथाल परिषद सहित अन्य आदिवासी संगठनो के नेतृत्व में दस जनवरी को आदिवासी समाज के लोग पारसनाथ में जुटने वाले है. इसे महाजुटान का नाम दिया गया है. पारसनाथ की शांति और विधि व्यवस्था के लिए लगातार बैठकों का दौर भी जारी है. जिला प्रशासन से बैठक के बाद दोनों पक्षों ने शांति को लेकर अपने अपने स्तर पर प्रयास जारी रखने का कमिटमेंट किया है.
इस पूरे मामले में आम सहमति बने इसके लिए कमिटी भी बना दी गयी है, जिसमे प्रशासनिक अफसर, जनप्रतिनिधि, जैन समाज और आदिवासियों के प्रतिनिधि शामिल हैं. इन सब के बीच आज हम आपसे कुछ जरुरी बात करना चाहते है. ये हम सब जानते है कि हर धर्म समाज की अपनी भावना होती है और उसका सम्मान हर हाल में होना ही चाहिए. किसी भी विवाद का निपटारा होना आपसी सहमति से बेहद जरूरी है. समय पर उस विवाद का निपटारा हो, इससे ही समाज आगे बढ़ता है. पारसनाथ विवाद पर तरह तरह के बयान सामने आ रहे है. इस मामले में राजनीति भी जमकर हो रही है. मगर राजनीति और बयानबाजी से इतर सद्भाव सबसे अहम् हो जाता है. एक समृद्ध और सशक्त समाज की कल्पना शोर से नहीं, बल्कि शांति से ही संभव है. सद्भावना के रास्ते पर चलकर ही सही निर्णय लिया जा सकता है. हम दोनों ही समुदायों से शांति की अपील करते है. इस मामले में फैसला विधि सम्मत हो और सरकार ही ले. ये जरूरी है. शांति व्यवस्था पर किसी तरह का हमला ना होने पाए, ये हमारी और आपकी जिम्मेदारी भी है. हम अपने अधिकारों की लड़ाई अहिंसावादी और शांति से लड़े, तभी लड़ाई अपना मुकाम हासिल करेगी.
हम नेताओ की बयानबाजी से दूर रहकर, एकता और अखंडता, सद्भाव और शांति का परिचय देते हुए आपसी सहमति से इस विवाद का निपटारा करे. ताकि सभी धर्मो और समुदायों की भावनाओ का सम्मान भी हो, और अशांति फैलाने वालो की मंशा पर पानी फेरा जा सके.