
झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने मणिपुर की घटना के बाद सख्त रुख अपनाते हुए एक बार फिर मॉब लिंचिंग के खिलाफ विधेयक लाने की तैयारी कर ली है. मणिपुर से हाल ही में वायरल हुए एक वीडियो ने देश को दहला दिया है. इसमें दो आदिवासी महिलाओ के साथ भीड़ द्वारा बर्बरतापूर्ण घटना ने देश को हिला कर रख दिया है. हेमंत सोरेन सरकार ने इससे पहले भी मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून बनाकर राजभवन को भेजा था, मगर तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने मॉब लिंचिंग के खिलाफ विधेयक को वापस लौटा दिया था. इसके बाद सरकार एक बार फिर मॉब लिंचिंग के खिलाफ कड़ा कानून बनाने जा रही है. सरकार को उम्मीद है कि इस बार राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन इस महत्वपूर्ण विधेयक को मंजूरी दे देंगे. इस बार विधेयक को तैयार करने में विधि विशेषज्ञों सहित राज्य के महाधिवक्ता के साथ सरकार ने 18 महीने तक मंथन किया है. उसके बाद इस संशोधित विधेयक को तैयार किया गया है.
मानसून सत्र में आएगा विधेयक: झारखंड का मानसून सत्र 28 जुलाई से शुरू हो रहा है. इससे पहले 25 जुलाई को कैबिनेट की बैठक होनी है. इसी बैठक में हेमंत सरकार मॉब लिंचिंग कानून के पक्ष में प्रस्ताव पास करेगी. इसके बाद इस विधेयक को सदन के पटल पर रखा जाएगा, जहां से पास होने के बाद इसे राजभवन को मंजूरी के लिए भेज दिया जाएगा. राजभवन से मंजूरी मिलते ही इस विधेयक को कानून का रूप दे दिया जाएगा. इस विधेयक को ‘भीड़ हिंसा रोकथाम और मॉब लिंचिंग संशोधित विधेयक 2023’ नाम दिया गया है.
18 मार्च 2022 को राजभवन ने सरकार को मॉब लिंचिंग निवारण अधिनियम 2021 को वापस लौटा दिया था. राजभवन ने विधेयक के अंग्रेजी संस्करण में धारा दो के उपखंड (1) के उपखंड 12 में गवाह संरक्षण योजना का जिक्र किया गया है, लेकिन हिंदी संस्करण में इसका जिक्र ही नहीं है. राज्यपाल ने इसी धारा के उपखंड (1) के उपखंड 6 में दी गई भीड़ की परिभाषा पर भी आपत्ति जतायी थी. अधिनियम में दो या दो से अधिक लोगो के समूह को ‘भीड़’ की संज्ञा दी गयी थी. कहा गया था कि अगर दो या दो से अधिक लोग मिलकर किसी के साथ मारपीट करते है, या कानून को अपने हाथ में लेते है तो उसे मॉब लिंचिंग माना जाएगा. राजभवन की ओर से बिल को वापस लौटते हुए कहा गया था कि दो या दो से अधिक व्यक्तियों के समूह को ‘अशांत भीड़’ नहीं कहा जा सकता है.
21 दिसंबर, 2021 के दिन में विधानसभा से ‘भीड़ हिंसा रोकथाम और मॉब लिंचिंग विधेयक- 2021’ के नाम से पारित होकर राजभवन को भेजे गए इस विधेयक को 18 मार्च 2022 के दिन राजभवन ने वापस लौटा दिया था.
पूर्व के विधेयक के सजा का क्या प्रावधान था ?
दोषी को आजीवन कारावास और 25 लाख तक जुर्माने का था प्रावधान हैं. मॉब लिंचिंग निवारण विधेयक-2021 में दोषी पाए जाने पर तीन साल से सश्रम आजीवन कारावास और 25 लाख रुपए जुर्माने के साथ संपत्ति की कुर्की तक का प्रावधान था. गंभीर चोट आने पर भी 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान किया गया था. वहीं भीड़ को उकसाने वालों को दोषी मानते हुए उन्हें तीन साल की सजा देने की व्यवस्था थी. विधेयक में पीड़ित परिवार को मुआवजा देने और पीड़ित के मुफ्त इलाज की व्यवस्था का प्रावधान भी किया गया था.