
वर्तमान में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार और पूर्व में रघुवर दास की सरकार ने झारखंड के माथे से वो कलंक मिटा दिया जिसमे राज्य के राजनैतिक अस्थिरता को ही इसका नसीब मान लिया जाता था. लगातार १४ साल तक राजनैतिक अस्थिरता का दंश झेल चुके झारखंड को लंबे इंतज़ार के बाद स्थायी सरकार मिली. मगर पूर्व की सरकार और वर्तमान सरकार में कार्यो के गति की बात की जाए, तो पूर्व की सरकार ने जहां एक हज़ार दिन पूरे होने पर कुछ ख़ास उपलब्धियां हासिल नहीं की थी. पूर्व की सरकार ने स्थानीय नीति पारित की, जो विवादों के घेरे में आ गयी. इसके अलावा रोजगार के आंकड़ों को लेकर भी लगातार सरकार पर सवाल उठते रहे. कई मोर्चो पर पूर्व की रघुवर सरकार को अपने ऐतिहासिक फैसलों पर भी यूटर्न लेना पड़ा. पूर्व की सरकार के एक हज़ार दिन जहां जन असंतोष से गुजरा तो वर्तमान सरकार के लिए भी 1000 दिन का सफर कांटो भरा रहा. मगर ये कांटे जनाक्रोश की वजह से उत्पन्न नहीं हुए. बल्कि प्राकृतिक त्रासदी ने राज्य के हालातो को बड़ा नुक्सान पहुंचाया, प्रचंड बहुमत से सरकार में आयी हेमंत सरकार के कामकाज को ढाई साल तक प्राकृतिक त्रासदी कोरोना ने ठप कर दिया. इस विकराल त्रासदी से उबरने में पूरे देश को ढाई साल लग गए.
ढाई साल बाद पटरी पर लौट रही व्यवस्था को रफ़्तार देने की जिम्मेदारी हेमंत सरकार के कंधो पर आयी. मगर ऐसे में जब कोई भी सरकार व्याकुलता से भरे फैसले लेती, लेकिन हेमंत सोरेन की सरकार ने सूझ बूझ और समझदारी से शांत होकर राज्य के दिशा और दशा के बारे में मंथन शुरू किया. उन क्षेत्रों पर ध्यान देने की कवायद शुरू की गयी, जिसकी पूरे होने की आस में राज्य की जनता दशकों से टकटकी लगाई हुई थी. एक और विकास को गति देने की चुनौती थी, तो वहीं दूसरी और अथाह सागर की भांति उफान मार रही जनआकांक्षाओ की पूर्ती का भार. मगर बावजूद इस चुनौती के राज्य की जनता को एक के बाद एक ऐतिहासिक सौगात देने वाली राज्य की पहली सरकार बन गयी झारखंड मुक्ति मोर्चा गठबंधन की सरकार.
तीन दशक बाद नक्सलवाद से मुक्त हुआ बूढ़ा पहाड़
हेमंत सरकार जैसी ही सत्ता में आयी, तो नक्सलवाद के खात्मे की मुहीम शुरू कर दी गयी. सबसे पहला टारगेट लातेहार एवं गढ़वा जिले में स्थित बूढ़ा पहाड़ को किया गया. यह पहाड़ नक्सलियों का गढ़ माना जाता था. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के निर्देश पर जनवरी 2020 से अबतक कुल 40 नए पुलिस कैंप बनाए गए, झारखंड पुलिस द्वारा ऑपरेशन ऑक्टोपस’ चलाया गया, जिसका हश्र यह है कि बूढ़ा पहाड़ को लगभग तीन दशक (32 वर्षों) बाद एक बार फिर सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के कब्जे से मुक्त करा लिया. झारखंड पुलिस ने ग्रामीणों को आश्वास्त किया कि अब उन्हें कभी दोबारा नक्सलियों के आतंक के साये में नहीं रहना होगा.
28 साल बाद नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज जन-आंदोलन को हेमंत सरकार ने किया खत्म
तीन दशक से चली आ रही नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की समस्या को भी हेमंत सोरेन सरकार ने खत्म किया. करीब एक माह पहले ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने फायरिंग रेंज के अवधि विस्तार की अनुमति नहीं दी. नेतरहाट फायरिंग रेंज का काम वर्ष 1964 में शुरू हुआ था. वर्ष 1999 में तत्कालीन बिहार सरकार ने इसे अवधि विस्तार दिया था. तब से नेतरहाट के टुटवापानी में हर वर्ष 22 और 23 मार्च को लातेहार और गुमला जिले के प्रभावित 245 गांव के लाखों ग्रामीण लगातार आंदोलन करते रहें हैं. सीएम हेमंत सोरेन के प्रयासों के कारण 28 साल के बाद इस आंदोलन का सुखद फल मिला.
सीएनटी एक्ट के तहत ली गयी जमीन 22 वर्षों में पहली बार रैयतों को वापस मिली
राज्य गठन के बाद ऐसा पहली बार हुआ, जब सीएनटी एक्ट के तहत आदिवासियों की ली गयी जमीन को प्राइवेट कंपनी द्वारा वापस दिया गया. ऐसा दो बार हुआ. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के निर्देश पर सबसे पहले फरवरी 2021 में हजारीबाग जिले के बड़कागांव स्थित पसेरिया मौजा में ज्वाइंट वेंचर की कंपनी रोहाने कोल कंपनी को दी गई करीब 56 एकड़ जमीन 26 रैयतों को लौटायी गयी. फिर सितंबर 2021 को पूर्वी सिंहभूम जिले के जमशेदपुर में स्थित बिष्टुपुर में 5.63 एकड़ आवंटित जमीन रैयतों को लौटायी गयी. दोनों ही मामलों का निर्देश अनुसूचित जाति-जनजाति व पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री चंपई सोरेन ने दिया.
बता दें कि सीएनटी एक्ट की धारा 49 (5) में नियम है कि उद्योग के नाम पर ली गयी जमीन पर कंपनी यदि 12 वर्षों तक कोई काम नहीं करती तो उसके वह जमीन रैयत को वापस लौटाना पड़ता है. इस दिशा में भी भाजपा मुख्यमंत्रियों ने कोई पहल नहीं की.
हजारीबाग में एक दशक के बाद लगान रसीद जारी करने का काम शुरू
हजारीबाग नगरपालिका क्षेत्र में एक दशक से लगान रसीद जारी नहीं होने की समस्या का भी हेमंत सोरेन सरकार ने निपटारा किया. सरकार ने हजारीबाग नगर पालिका जमींदारी अधिकार को खत्म करते हुए निर्देश दिया कि अब सरकार यहां पर लगान रसीद जारी करेगी. इसे लेकर बिहार भूमि सुधार अधिनियम 1950 के प्रावधान के अनुरूप हेमंत सरकार ने भूमि के अभिलेखों का हस्तांतरण का निर्देश दिया. बता दें कि हजारीबाग शहर की करीब आधी भूमि का राजस्व रसीद हजारीबाग नगरपालिका द्वारा जारी होता था. जिसे बाद में 2011-2012 में रोक लगाया गया. तब से इलाके के लोग जमीन की खरीद-बिक्री, म्यूटेशन, आदि को लेकर लोग कई तरह की परेशानियों का सामना कर रहे थे.
1932 के आधार पर स्थानीय नीति और ओबीसी आरक्षण का वादा पूरा किया
इसी तरह मुख्यमंत्री ने अपने चुनावी वादों को पूरा करते हुए दो दशक से चर्चा का केंद्र बिंदु बनी रही स्थानीय नीति और ओबीसी आरक्षण की मांग को पूरा किया. बीते दिनों लिए कैबिनेट की बैठक में 1932 के खतियान आधारित नीति बनाने की दिशा में पहल शुरू हुई. झाऱखंड का आदिवासी-मूलवासी समाज लंबे समय से इसकी मांग कर रहा था. इसी तरह भाजपा नेतृत्व वाली बाबूलाल मरांडी सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 27 प्रतिशत से घटाकर 14 प्रतिशत किया था. उस समय से इसे बढ़ाने की मांग हो रही थी. हेमंत कैबिनेट की बैठक में आरक्षण को फिर से 27 प्रतिशत करने के प्रस्ताव को स्वीकृति मिली. दोनों ही नीतियों को अब एक-एक विधेयक लेकर विधानसभा से पारित कराया जाएगा. इसके साथ ही राज्य के एक लाख सरकारी कर्मियों के पुरानी पेंशन की मांग को हेमंत सरकार ने पूरा कर दिया. राज्य के लाखो सरकारी कर्मी इसकी मांग लगातार कर रहे थे.