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राजभवन ने फिर लौटाया स्थानीय नीति का विधेयक, राज्य के थर्ड फोर्थ ग्रेड की सरकारी नौकरियां केवल स्थानीय के लिए आरक्षित करने के प्रावधान पर राज्यपाल ने जतायी आपत्ति

राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने विधेयक लौटते हुए विधानसभा से पुनर्विचार करने के लिए कहा है. राजभवन की ओर से कहा गया है कि थर्ड फोर्थ ग्रेड की नौकरियों के लिए आवेदन करने से अन्य राज्यों के लोगो को रोका नहीं जा सकता है. सरकार चाहे तो स्थानीय के लिए 5 साल तक आरक्षित कर सकती है थर्ड फोर्थ ग्रेड का पद

रांची. झारखंड के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति विधेयक (झारखंड स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा और ऐसे स्थानीय व्यक्तियों को परिणामी सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लाभों का विस्तार करने के लिए विधेयक -2022) को लौटा दिया है. विधानसभा को इस पर ​पु​नर्विचार करने को कहा है. राजभवन ने विधेयक में शामिल कानूनी मुद्दों पर अटॉर्नी जनरल से राय मांगी थी. 15 नवंबर को अटॉर्नी जनरल की राय मिलने के बाद राजभवन ने बिल को लौटाया. राज्यपाल ने संदेश के माध्यम से विधानसभा को अटॉर्नी जनरल की राय से अवगत ​करा दिया है.

अटॉर्नी जनरल ने कहा है कि विधेयक में स्थानीय व्यक्ति शब्द की परिभाषा लोगों की आकांक्षाओं के अनुकूल है. यह स्थानीय परिस्थितियों के लोकाचार और संस्कृति के साथ फिट बैठती है. तर्कसंगत और वस्तुनिष्ठ मानदंडों पर आधारित प्रतीत होती है. लेकिन लगता है कि विधेयक की धारा -6(ए) संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद -16(2) का उल्लंघन कर सकती है और यह अमान्य हो सकती है. हालांकि पैरा-24 में मेरी राय पर अमल कर इसे बचाया जा सकता है.

अटॉर्नी जनरल ने लिखा-इस विधेयक के मुताबिक राज्य सरकार की ​थर्ड-फोर्थ ग्रेड की नौकरियां केवल स्थानीय व्यक्तियों के लिए आरक्षित होंगी. स्थानीय के अलावा अन्य लोगों की नियुक्तियों पर पूरी तरह से प्रतिबंध रहेगा. मुझे लगता है कि थर्ड-फोर्थ ग्रेड की नौकरियों के लिए आवेदन करने से अन्य लोगों को वंचित नहीं किया जा सकता. इसके बजाय सुरक्षित तरीका यह है कि सभी चीजों में स्थानीय व्यक्तियों को समान प्राथमिकता दी जाए. हालांकि फोर्थ ग्रेड के लिए स्थानीय व्यक्ति पर विचार किया जा सकता है.

पूर्व राज्यपाल रमेश बैस ने भी लौटा दिया था यह विधेयक

हेमंत सरकार द्वारा पिछले साल 11 नवंबर को विधानसभा का एक दिवसीय विशेष सत्र बुलाकर इस विधेयक को पारित किया गया था. इसे मंजूरी के लिए राजभवन भेजा गया. लेकिन जनवरी 2023 में तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने इस विधेयक को यह कहकर लौटा दिया था कि विधेयक की वैधानिकता की गंभीरतापूर्वक समीक्षा कर लें. देख लें कि यह संविधान के अनुरूप है या नहीं. यह भी देख लें कि इसमें सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना तो नहीं हो रही है.

26 जुलाई को सरकार ने राजभवन को लौटा दिया था बिल: सरकार ने स्थानीय नीति सहित राजभवन द्वारा लौटाए गए तीन विधेयकों को वापस राजभवन को लौटा दिया ​था. राजभवन को भेजे गए मेमोरेंडम में कहा गया था कि ये बिल विधानसभा सचिवालय ने राजभवन को भेजा था. इसलिए राजभवन को भी त्रुटि या मेमोरेंडम विधानसभा को ही भेजना चाहिए. सरकार इन विधेयकों को फिर विधानसभा के पटल पर रखेगी.

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