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जानिये क्या है सरना धर्म कोड? क्यों देश का आदिवासी समाज कर रहा है अलग धर्म कोड देने की मांग? क्या है सरना धर्म कोड के पीछे का सबसे मजबूत आधार? झारखंड से ही क्यों उठ रही है सरना धर्म कोड के लिए सबसे मुखर आवाज?

2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में कुल 11 करोड़ आदिवासी थे। इनमें 50 लाख से ज्यादा लोगों ने हिंदू के बजाय 'सरना' को अपना धर्म बताया था।

रांची. झरखंड में एक बार फिर आदिवासियों की अलग धार्मिक पहचान ‘सरना धर्म कोड’ की मांग जोर पकड़ने लगी है। आदिवासी समाज एक बार फिर अपनी दशकों पुरानी मांग को लेकर सड़कों पर उतर आया है। आदिवासियों की मांग है कि अगले जनगणना फॉर्म में दूसरे सभी धर्मों की तरह सरना के लिए अलग से एक कॉलम बनाया जाए। इसके साथ ही हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, जैन, सिख और बौद्ध की तरह ‘सरना’ को भी अलग धर्म का दर्जा मिले। आज हम आपको सरना धर्म कोड से जुडी तमाम बातें विस्तार से बताएंगे, जिसके बाद आपके जहन में आदिवासी समाज की इस मांग को लेकर कोई कन्फ्यूजन नहीं रह जायेगा। हम आपको बताएंगे कि क्या है सरना धर्म कोड? कितना पुराना है इनका इतिहास? हिंदू, ईसाई या दूसरे धर्मों से अलग दर्जा मिलने से आदिवासी समाज में क्या बदल जाएगा?

सबसे पहले जानिए क्या है पूरा मामला

भारत में आदिवासी समुदाय का एक बड़ा हिस्सा हिंदू नहीं, बल्कि ‘सरना’ धर्म को मानता है। इनके मुताबिक सरना वो लोग हैं जो प्रकृति की पूजा करते हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में कुल 11 करोड़ आदिवासी थे। इनमें 50 लाख से ज्यादा लोगों ने हिंदू के बजाय ‘सरना’ को अपना धर्म बताया था। पिछले 11 सालों में इनकी संख्या और ज्यादा बढ़ी है। इनमें भी सरना धर्म को मानने वालों की सबसे अधिक जनसख्या झारखंड में है। झारखंड में इस धर्म को मानने वालों की सबसे ज्यादा 42 लाख आबादी है। जो 2025 में संभवतः 60 लाख के करीब है। इसके बाद पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा, और मध्यप्रदेश के पश्चिमी कुछ भागो में भी इनकी अच्छी-खासी आबादी है।

ये लोग खुद को प्रकृति का पुजारी बताते हैं और मूर्ति पूजा में यकीन नहीं करते। इस धर्म को मानने वाले लोग 3 चीजों की पूजा करते हैं… पहला- धर्मेश यानी पिता, दूसरा- सरना यानी मां, और तीसरा- प्रकृति यानी जंगल-पहाड़।

ये लोग न तो मूर्ति पूजा और न ही वर्ण व्यवस्था (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र), स्वर्ग-नरक आदि में विश्वास करते हैं, इसीलिए वे हिंदू धर्म से अलग हैं। हालांकि, इनमें कई लोग ऐसे है जो भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करते है। ये लोग भगवान शिव को पिता और माता पार्वती को मां मानते है।

सरना धर्म के लोग जल, जंगल, जमीन की रक्षा में विश्वास करते हुए पेड़ों और पहाड़ियों की पूजा करते हैं। इस धर्म के लोग सरहुल पर्व को काफी धूम-धाम से मनाते हैं, इस दिन ही इनका नया साल शुरू होता है। सरना को मानने वाले धर्मगुरु बंधन तिग्गा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि पृथ्वी की संरचना के समय से अगर कोई सबसे पुराना धर्म है तो वो ‘सरना’ धर्म है।

सरना समुदाय के लोगों की केंद्र सरकार से क्या मांग है?

सरना को मानने वाले आदिवासियों की भारत सरकार से सिर्फ एक मांग है कि सरना धर्म कोड को अगली जनगणना से पहले लागू किया जाए। 50 लाख लोगों ने धार्मिक दर्जा नहीं मिलने के बावजूद 2011 की जनगणना में ‘सरना’ को अपना धर्म बताया था। सरना को धर्म का दर्जा मिला तो और ज्यादा आदिवासी इस धर्म को अपनाएंगे। ऐसे में संविधान के आर्टिकल- 25 के तहत किसी भी धर्म को मानने के मौलिक अधिकार के तहत सरना धर्म कोड को मान्यता मिलनी चाहिए।

सरना को हिंदू या ईसाई से अलग धर्म का दर्जा क्यों मिलना चाहिए?

सरना धर्म को संवैधानिक मान्यता मिले, इसका एक ठोस तर्क तो इसे मानने वालों की संख्या है। दरअसल, 2011 की राष्ट्रीय जनगणना के मुताबिक सरना धर्म को मानने वालों की संख्या जैन धर्म को मानने वालों से भी ज्यादा है, इसीलिए इसे मानने वाले इसे भी धर्म का दर्जा देने की मांग कर रहे है।

झारखंड मुक्ति मोर्चा हमेशा से सरना धर्म कोड का समर्थन करती रही है। दिशोम गुरु शिबू सोरेन, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत झामुमो-कांग्रेस के अधिकांश नेताओं ने आदिवासी समाज की मांग का लगातार समर्थन किया है। इतना ही नहीं, स्वर्गीय कार्तिक उरांव और स्वर्गीय रामदयाल मुंडा ने भी आदिवासियों के लिए अलग धार्मिक पहचान की पैरवी की थी।

झारखंड सरकार में मंत्री दीपक बिरुआ के मुताबिक, 2016 में केंद्र सरकार ने कहा है कि आदिवासी समुदाय के लोग 6 में से किसी एक धर्म को चुन सकते हैं, अलग से कॉलम नहीं जोड़ा जाएगा। ऐसे में हमारी मांग है कि जब सरना हमारा धर्म है, तो हम क्यों जबरदस्ती दूसरे धर्म को माने।’

सरना धर्म कोड का समर्थन करने वालो का तर्क है कि सरना को अलग धार्मिक समुदाय के रूप में मान्यता मिलने से आदिवासी समाज की भाषा, परंपरा, संस्कृति और इतिहास को बेहतर सुरक्षा मिलेगी। आदिवासियों की धार्मिक पहचान बचाने के लिए भी ये जरूरी है। सुरक्षा के अभाव में सरना धर्म के लोग मजबूरन हिंदू, ईसाई या अन्य धर्म को अपना लेते हैं।

1871 में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड होता था

1871 में जब पहली बार देश में जनगणना हुई थी तो उस वक्त आदिवासियों के लिए अलग से धार्मिक कोड की व्यवस्था थी। 1961 की जनगणना में आदिवासियों को अलग धर्म की बजाय हिंदू धर्म की ही शेड्यूल ट्राइब्स यानी अनुसूचित जनजाति कहा जाने लगा। इसके साथ ही जनगणना में धर्म को लेकर एक अलग से कैटेगरी ‘अन्य’ की बनाई गई। 2011 की जनगणना में 79 लाख लोगों ने धर्म के कॉलम में ‘अन्य’ भरा था। ये एक अप्रत्याशित कदम था।

देश में आदिवासियों की 750 से भी अधिक जनजातियां है। आदिवासियों को अभी मुख्यतः हिंदू धर्म का हिस्सा माना जाता है। मगर, देश के अलग-अलग हिस्सों में रह रहे करोड़ों आदिवासी खुद के लिए अलग धार्मिक पहचान को लेकर संघर्ष कर रहे है।

भारत सरकार और बीजेपी का सरना धर्म की मान्यता पर क्या तर्क है?

2020 में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झारखंड विधानसभा ने सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्ताव पास किया। इसमें आदिवासियों को अलग धर्म का दर्जा देने की बात कही गई थी। इसे लागू करने के लिए केंद्र सरकार की हरी झंडी चाहिए थी, लेकिन केंद्र ने इस प्रस्ताव पर अनुमति नहीं दी।

आदिवासियों को हिंदू धर्म से अलग मानने और अलग धर्म कोड बनाने की मांग पर तब केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री फगन सिंह कुलस्ते ने कहा था- ‘आदिवासी पहले सनातनी हिन्दू हैं। इनकी पूजा पद्धति और हिंदुओं की पूजा में कोई अंतर नहीं है।’ इससे साफ होता है कि केंद्र सरकार और बीजेपी सरना को अलग धर्म का दर्जा देने के मूड में अभी नहीं है।

2015 में रांची की सड़कों पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के पुतले फूंके गए थे

नवंबर 2015 की बात है। रांची में मोहन भागवत के पुतले फूंके जा रहे थे। वजह यह थी कि संघ में नंबर 2 की हैसियत रखने वाले सरकार्यवाहक कृष्णगोपाल अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में शामिल होने रांची आए थे। कृष्णगोपाल ने यहां कहा था कि सरना कोई धर्म नहीं है। आदिवासी भी हिंदू धर्म कोड के अधीन हैं। इसलिए उनके लिए अलग से धर्म कोड की कोई जरूरत नहीं है।

इसके अलावा 2020 में सर संघचालक मोहन भागवत ने भी झारखंड में कहा था कि अगले जनगणना में धर्म वाले कॉलम में आदिवासी अपना धर्म हिंदू लिखें, इसके लिए संघ देशभर में अभियान चलाएगा।

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