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रांची में झारखंड आदिवासी महोत्सव 2023 का रंगारंग आगाज, दिशोम गुरु शिबू सोरेन और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने किया मुख्य कार्यक्रम का उद्घाटन, आदिवासी संस्कृति से सराबोर हुई राजधानी

बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान में हो रहे मुख्य कार्यक्रम में सांस्कृतिक कार्यक्रम के अलावा आदिवासी परिधान, फैशन, खान-पान के स्टॉल भी सजाये गए है.

Ranchi. झारखंड की राजधानी रांची आज से आदिवासी गौरव के रंग में रंग गयी. रांची में आज से दो दिवसीय झारखंड आदिवासी महोत्सव का भव्य और रंगारंग आगाज हुआ. कार्यक्रम की शुरुआत रीझ रंग रसिका रैली के साथ हुई. ये रैली रांची के धुमकुड़िया भवन से निकलकर बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान तक गयी. इस रैली में 32 जनजातीय समुदाय के लोगों ने हिस्सा लिया.


वहीं, जेल चौक स्थित बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान में झारखंड आदिवासी महोत्सव 2023 का मुख्य कार्यक्रम स्थल बनाया गया है.


यहां भारी संख्या में युवाओं की मौजूदगी दिखी. पूरा कार्यक्रम स्थल जनजातीय रंग में सराबोर नजर आया.


बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान में हो रहे मुख्य कार्यक्रम में सांस्कृतिक कार्यक्रम के अलावा आदिवासी परिधान, फैशन, खान-पान के स्टॉल भी सजाये गए है.


झारखंड आदिवासी महोत्सव का उदघाटन दिशोम गुरु शिबू सोरेन और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने किया. इस मौके पर सीएम हेमंत सोरेन ने आदिवासी संस्कृति से जुड़े डाक टिकट को भी जारी किया.


महोत्सव में एक ओर जहां आदिवासी समाज का उल्लास देखने को मिला, वहीं ऐसे भी लोग मिले, जो मणिपुर में आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आक्रोश प्रकट करते दिखाई दिए. युवाओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मणिपुर समेत देश के अन्य हिस्सों में आदिवासी समाज के साथ हो रहे अत्याचार पर रोक लगाने की मांग की.


कार्यक्रम स्थल सहित विभिन्न महत्वपूर्ण स्थलो पर लगाया गया सेल्फी पॉइंट पर युवा अलग अलग अंदाज में तस्वीर लेकर झारखंड आदिवासी महोत्सव 2023 की यादों को संजोते दिखाई दिए.


सभी आदिवासी समुदाय एक हैं, इसलिए हमें एक लक्ष्य के साथ आगे बढ़ना होगा – मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन

कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह के दौरान सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि सभी आदिवासी समुदाय की संस्कृति एक जैसी है. आदिवासियों से मेरा आग्रह है कि वे अपने बच्चे- बच्चियों को शिक्षित जरूर करें. जब बच्चे शिक्षित होंगे तभी आदिवासी समुदाय उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ेगा. राज्य समन्वय समिति के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद श्री शिबू सोरेन आज विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर झारखंड आदिवासी महोत्सव 2023 के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि “आदिवासी महोत्सव” पूरे उत्साह के साथ मनाया जा रहा है. यह महोत्सव आदिवासी समुदाय की एकजुटता और आपसी भाईचारा को दर्शाता है. आने वाली पीढ़ी भी इसी तरह अपनी संस्कृति और सभ्यता से जुड़ी रहे, इसके लिए उन्हें प्रेरित करने की आवश्यकता है.

इस अवसर पर मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने कहा कि आज विश्व आदिवासी दिवस है. इस अवसर पर दो दिवसीय झारखंड आदिवासी महोत्सव-2023 के उद्घाटन समारोह में शामिल होने का मौका मिला है. इस महोत्सव के अपने मायने हैं. इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न राज्यों से आये हुए आदिवासी समूह अपना नृत्य एवं गायन तो प्रस्तुत करेंगे ही, साथ ही आदिवासी समाज की समस्या एवं अन्य समसामयिक विषयों पर विमर्श का भी कार्यक्रम रखा गया है. इस महोत्सव से आदिवासी जीवन दर्शन और लोक संस्कृति को एक अलग और विशिष्ट पहचान मिलेगी.

नृत्य, संगीत के साथ-साथ संघर्ष आदिवासी समाज की है पहचान

मुख्यमंत्री ने कहा कि नृत्य, संगीत के साथ-साथ सदैव संघर्ष आदिवासी समाज की मुख्य पहचान है. आज जब मैं आदिवासी महोत्सव के मंच से बोल रहा हूँ तो बिना झिझक कहना चाहूंगा कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में हमारे आदिवासी भाई-बहन प्रताड़ना झेलने को विवश हैं, अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को मजबूर हैं. क्या मध्य प्रदेश ? क्या मणिपुर ? क्या राजस्थान ? क्या छत्तीसगढ़ ? क्या गुजरात ? क्या तमिलनाडु ? मणिपुर में हजारों घर जल कर तबाह हो गये हैं, सैकड़ों लोगों को मारा गया है, महिलाओं की इज्जत के साथ खिलवाड़ किया गया है. दरअसल यह सदियों से चले आ रहे संघर्ष का ही विस्तार है. संघर्ष है वर्चस्ववादी ताकतों और समानता तथा भाईचारे की ताकतों के बीच. संघर्ष है धार्मिक कट्टरपंथियों और ‘जियो और जीने दो’ की उदार ताकतों के बीच. संघर्ष है भविष्यवादी, भाग्यवादी चिंतकों और वर्तमान को समृद्ध करने वाली शक्तियों के बीच. संघर्ष है प्रकृति पर कब्जा करने वाली विनाशकारी शक्तियों एवं प्रकृति का सहयोगी – सहभोगी बन कर रहने वाली श्रमजीवी एवं साहसी शक्तियों के बीच. 

एकजुट होकर लड़ें और आगे बढ़े

मुख्यमंत्री ने कहा कि आज विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर मैं देश के 13 करोड़ से ज्यादा आदिवासियों भाइयों-बहनों से एक होकर लड़ने एवं बढ़ने का अपील करता हूँ. गोंड, मुंडा, भील, कुकी, मीणा, संथाल, असुर, उराँव, चेरो आदि सभी को एकजुट होकर सोचना होगा. आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है. हम जाति-धर्म-क्षेत्र के आधार पर बंटे हुए हैं. जबकि सबकी संस्कृति एक है. खून एक है, तो समाज भी एक होना चाहिए. हमारा लक्ष्य भी एक होना चाहिए. हमारी समस्या का बनावट लगभग एक जैसा है, तो हमारी लड़ाई भी एक होनी चाहिए.

आदिवासियों के लिए अपनी जमीन- अपनी संस्कृति- अपनी भाषा बहुत महत्वपूर्ण है

मुख्यमंत्री ने कहा, कि क्या यह दुर्भाग्य नहीं है कि जिस अलग भाषा-संस्कृति-धर्म के कारण हमें आदिवासी माना गया ,उसी विविधता को आज के नीति निर्माता मानने के लिए तैयार नहीं हैं ? हम आदिवासियों के लिए अपनी जमीन- अपनी संस्कृति- अपनी भाषा बहुत महत्वपूर्ण है. आदिवासी समुदाय एक स्वाभिमानी समुदाय है, मेहनत करके खाने वाली समुदाय है, ये किसी से भीख नहीं मांगती है. हम भगवान बिरसा, एकलव्य, राणा पूंजा की समुदाय के हैं. हम इस देश के मूल वासी हैं. हमारे पूर्वजों ने ही जंगल बचाया, नदियां बचाई, पहाड़ बचाया है.

आदिवासी संस्कृति को आदर की दृष्टि से देखने की जरूरत

मुख्यमंत्री ने कहा कि इस महान आदिवासी संस्कृति को आदर की दृष्टि से देखने की जरूरत है. हमें सिर्फ जंगल में रहने वाले गरीब के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. जंगल एवं मानव विकास की पूरी कहानी हमारे पूर्वजों के पास है. आज जरुरत है कि एक आम देशवासी के अन्दर आदिवासी समाज के प्रति संवेदना जगाई जाए. जरुरत है आम जन के अन्दर आदिवासी समाज के प्रति सम्मान एवं सहयोग की भावना पैदा करने की.

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