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अच्छी खबर : 1994 से चल रहे आदिवासी महाकुंभ दुभियाखाड मेले को हेमंत सरकार में मिला राजकीय मेले का दर्जा, लोगो में ख़ुशी की लहर, होगा प्रसार प्रचार

सरकार के इस फैसले से जहां पलामू प्रमंडल के लोगो में उत्साह है तो वहीं आदिवासी महाकुंभ कहे जाने वाले इस विरासत को विलुप्त होने से बचाने के लिए भी हेमंत सोरेन सरकार का यह फैसला मील का पत्थर साबित होगा.

पलामू प्रमंडल के मेदिनीनगर में आयोजित होने वाले सालाना आदिवासी महाकुंभ महोत्सव दुबियाखाड मेले को हेमंत सोरेन सरकार ने राजकीय महोत्सव घोषित कर दिया है. एकीकृत बिहार के समय से चले आ रहे इस महोत्सव की अब जाकर किसी सरकार ने सुध ली है. सरकार के इस फैसले से जहां पलामू प्रमंडल के लोगो में उत्साह है तो वहीं आदिवासी महाकुंभ कहे जाने वाले इस विरासत को विलुप्त होने से बचाने के लिए भी हेमंत सोरेन सरकार का यह फैसला मील का पत्थर साबित होगा. राजकीय महोत्सव घोषित होने से दुबियाखाड मेले का प्रचार प्रसार पूरे विश्व में होगा. और इस मेले को और मजबूती मिलेगी. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन लगातार आदिवासियों के अधिकारों और उनकी संस्कृति को सहेजने और बचाने में लगे हुए है. शुक्रवार को पलामू में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सीएम हेमंत सोरेन ने यह घोषणा की.

क्या है दुबियाखाड मेला : पलामू प्रमंडल के मेदिनीनगर में हर वर्ष महाराजा मेदिनी राय के स्मृति में आयोजित किये जाने वाले इस आदिवासी महाकुंभ मेले को दुबियाखाड मेला भी कहा जाता है. 1994 से लगातार आयोजित हो रहे इस मेले को हर साल 11 और 12 फरवरी के दिन आयोजित किया जाता है. नशामुक्ति और महाराजा मेदिनी राय के पदचिन्हो पर चलने की प्रेरणा देने वाले इस मेले में नशा करना, या मांस मदिरा का सेवन करना पूर्ण वर्जित है. मेले में हर साल सरकार की ओर से परिसंपत्तियों का वितरण और योजनाओ का शिलान्यास उद्घाटन किया जाता है. दूर दराज से आदिवासी समाज के लोग इस मेले में शिरकत करने पहुंचते है. मेले में गरीब परिवारों के लिए सामूहिक विवाह का आयोजन भी होता है. मनोरंजन के लिए झूले, खानपान, स्टाल्स की व्यवस्था भी होती है. मेले के दौरान आदिवासी समाज के लोग पारंपरिक नृत्य करते है. इन कार्यक्रमों के माध्यम से नशा ना करने, मांस मदिरा, शराब, हडियां से दूर रहने और महाराजा मेदिनी राय के आदर्शो पर चलकर सभ्य और नशामुक्त समाज बनाने का संदेश दिया जाता है. पलमा देवी के पहाड़ पर पूजन और झंडोतोलन करने के बाद ही मेले की विधिवत शुरुआत होती है.

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