नमाज कक्ष के बाद आदिवासी समाज ने भी विधानसभा में पूजा पाठ के लिए मांगा विशेष रूम, आदिवासी परंपरा और संस्कृति को ना मानने वालो का एसटी आरक्षण समाप्त करने की सरकार से की मांग
रांची के धुमकुड़िया भवन में आयोजित इस सम्मलेन में कई धार्मिक प्रस्ताव पारित किये गए. इनमे मुख्य रूप से जनगणना में आदिवासी धर्म को मान्यता देने, सरना, भिल्ली, कोया, भूनेम को एक सूत्र में बांधने, झारखंड में आदिवासियों के धार्मिक स्थल की रक्षा हेतु आदिवासी धार्मिक न्यास बोर्ड के गठन का प्रस्ताव, झारखंड राज्य के आदिवासियों के धार्मिक अगुवाओ की मासिक मानदेय निर्धारित किये जाने संबंधी प्रस्ताव शामिल थे.

रांची. विधानसभा में नमाज कक्ष और हिन्दुओ के लिए पूजा कक्ष बनाने को लेकर विवाद पहले से ही चला आ रहा है. अब आदिवासी समाज ने भी विधानसभा समेत अन्य सरकारी कार्यालयों में आदिवासी रीति रिवाज से पूजा पाठ इतियादी किये जाने को लेकर सरना धर्मकक्ष बनाने की मांग कर दी है. अखिल भारतीय आदिवासी धर्म परिषद् की अध्यक्षता में आज रांची में आदिवासी धर्म महासम्मेलन का आयोजन किया गया. रांची के धुमकुड़िया भवन में आयोजित इस सम्मलेन में कई धार्मिक प्रस्ताव पारित किये गए. इनमे मुख्य रूप से जनगणना में आदिवासी धर्म को मान्यता देने, सरना, भिल्ली, कोया, भूनेम को एक सूत्र में बांधने, झारखंड में आदिवासियों के धार्मिक स्थल की रक्षा हेतु आदिवासी धार्मिक न्यास बोर्ड के गठन का प्रस्ताव, झारखंड राज्य के आदिवासियों के धार्मिक अगुवाओ की मासिक मानदेय निर्धारित किये जाने संबंधी प्रस्ताव शामिल थे.
सम्मेलन को संबोधित करते हुए गीताश्री उरांव ने कहा कि आदिवासी समाज कई मुद्दों पर एक साथ संघर्ष कर रहा है और संघर्ष से ही आदिवासी समाज का धार्मिक एवं सांस्कृतिक विकास का रास्ता निकल सकता है. आदिवासी का धर्म व्यापक दृष्टिकोण है, इसको छोटे रूप से नहीं देखना चाहिए. आदिवासियों अपने धर्म को अहिंसात्मक,प्रेम,स्नेह भाईचारा, सौहार्द के रूप से मनाते आ रहे है. पूरे देश के आदिवासियों को एक स्वर में एक सूत्र में जोड़ने का काम आदिवासी धर्म से ही संभव है. इसलिए सरना, भील्ली,कोया पुनेम को एक सूत्र में बांधने की आवश्यकता है.
प्रेम शाही मुंडा ने कहा कि आदिवासी समाज को अपने धर्म एवं संस्कृति का अनुसरण मजबूती से करने की आवश्यकता है. आदिवासियों के धर्म संस्कृति के विकास के लिए पाहनो को धार्मिक प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है और जो शक्तियां ये मानती है कि आदिवासियों का कोई धर्म नहीं होता है, उसको मुंह तोड़ जवाब आदिवासी समाज को देने की आवश्यकता है. इसलिए आदिवासी समाज से अपील है कि देश के आदिवासियों को मजबूत करने के लिए होने वाले 2023 की जनगणना प्रपत्र में आदिवासी धर्म कोड ही लिखें . जिससे पूरे देश के आदिवासी मजबूत हो.
पूर्व मंत्री देव कुमार धान ने कहा कि आदिवासी समाज अपने धर्मकोड के संदर्भ में जाग रहा है. यह शुभ संकेत है. आदिवासी धर्म कोड लागू करने के लिए पूरे देश के आदिवासियों को एक होना होगा. नहीं तो जिस प्रकार से आदिवासी समाज के भाषा,संस्कृति पर जातीय हमले हो रहे है, यह चिंता का विषय है. समूचे आदिवासी समाज को धर्मकोड के मुद्दे पर एक मंच पर आने की आवश्यकता है. तब ही आदिवासी बचेंगे.
अखिल भारतीय आदिवासी धर्म परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष विश्वनाथ वाकडे ने कहा कि आदिवासियों के धर्मकोड के लिए पूरे देश में अभियान चल रहा है. अगला बैठक नागपुर में तय है और धर्मकोड लागू करने के लिए आदिवासियों को शहादत भी देना पड़े तो उसके लिए तैयार रहे. जब तक केंद्र सरकार धर्मकोड लागू नहीं करती है तब तक हमारा संघर्ष जारी रहेगा.