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इस साल छठ पूजा कब है? 6 नवंबर या 7 नवंबर? छठ पूजा की तारीख को लेकर न हो कन्फ्यूज, जानिये नहाय खाय से लेकर उदीयमान सूर्य को अर्घ्य तक की सही तारीख

रांची. हिंदू पंचांग के मुताबिक, हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से छठ पूजा का त्योहार मनाया जाता है. ये महापर्व पूरे चार दिनों तक चलता है, जिसकी शुरुआत नहाय खाय से होती है. छठ पूजा का मुख्य व्रत कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर रखा जाता है. इस दिन छठ व्रती अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छी सेहत-भविष्य के साथ-साथ अपनी मनोकामनाओ की पूर्ती के लिए लिए सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा करते है. साथ ही षष्ठी तिथि को संध्याकाल व सप्तमी तिथि को सूर्योदय के दौरान भगवान भास्कर को अर्घ्य भी देते है. इस महापर्व के दौरान छठ व्रती पूरे 36 घंटे का निर्जला व्रत रखते हैं. इसी वजह से छठ के व्रत को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है.

इस साल दिवाली की तारीख को लेकर काफी कंफ्यूजन बना हुआ है. कुछ लोगों का मानना है कि दिवाली 31 अक्टूबर को मनाई जाएगी तो वहीं, कुछ लोग 1 नवंबर को दिवाली मनाने की बात कर रहे हैं. बहरहाल, हर साल दिवाली के पूरे 6 दिन बाद छठ महापर्व शुरू हो जाता है. लेकिन इस बार छठ पूजा की तारीख को लेकर भी कंफ्यूजन की स्थिति बनी हुई है. आपके इस कंफ्यूजन को दूर करते हुए आपको बताते हैं कि साल 2024 की छठ पूजा कब पड़ेगी और नहाए खाए कब है नवंबर में.

कार्तिक छठ पूजा 2024 कब है?

पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के साथ छठ पूजा शुरू हो जाती है. वहीं, षष्ठी तिथि को शाम के समय सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 7 नवंबर को सुबह 12 बजकर 41 मिनट से शुरू हो रही है, जो 8 नवंबर को सुबह 12 बजकर 34 मिनट पर समाप्त होगी. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, छठ पूजा 7 नवंबर को मनाई जाएगी. इसी दिन संध्याकाल में भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जायेगा.

छठ पूजा 2024 कैलेंडर :

छठ पूजा का पहला दिन, 5 नवंबर 2024- नहाय खाय
छठ पूजा का दूसरा दिन, 6 नवंबर 2024- खरना
छठ पूजा का तीसरा दिन, 7 नवंबर 2024- संध्या अर्घ्य
छठ पूजा का चौथा दिन, 8 नवंबर 2024- उषा अर्घ्य

नहाय खाय से शुरू होता है छठ महापर्व:

छठ पूजा के महापर्व की शुरुआत पहले दिन नहाय-खाय के साथ होती है. दूसरे दिन लोहंडा और खरना होता है. वहीं, तीसरे दिन संध्या अर्घ्य और चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद निर्जला व्रत का पारण किया जाता है. व्रत का पारण करने के साथ ही इस पर्व का समापन हो जाता है.

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