
रांची: सीएम हेमंत सोरेन अक्सर अपनी मजबूत छवि और निडर फैसलों के लिए जाने जाते है. हेमंत सोरेन के विरोधी भी उन्हें ‘हिम्मत वाला सीएम’ कहते है. जिस काम को कोई करने या जिसपर कोई बोलने तक से बचता है, वो काम सीएम हेमंत सोरेन पूरी निडरता और साहस के साथ कहते और करते दिखाई देते है. उनकी यही दमदार और बेखौफ आदिवासी नेता की छवि उन्हें दूसरे नेताओं से अलग बनाती है. सीएम हेमंत सोरेन आदिवासी समाज से आते है, वे हमेशा परिणाम की परवाह किये बगैर कड़े और साहसी फैसले लेने से पीछे नहीं हटते. सरना धर्म कोड का मामला हो या 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति को सदन से पास कराने का मामला हो, चाहे नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज रद्द करने का मामला हो या पत्थलगड़ी मामले में हज़ारो आदिवासियों पर पूर्व की सरकार में लादे गए देशद्रोह का केस वापस लेने जैसे कड़े फैसले हो, सीएम हेमंत सोरेन ने हमेशा अपने काम और करिश्मे से अपने विरोधियों तक को दंग कर दिया है.
अब सीएम हेमंत सोरेन के एक और साहसी काम की चर्चा राजधानी रांची में हो रही है. हर कोई यही कह रहा है कि बड़े हिम्मत वाले है हेमंत, जो उस काम को करने का फैसला ले रहे है, जिसके बारे में कोई दूसरा नेता सोच कर भी कांप जाता. दरअसल, सीएम हेमंत सोरेन ने बीते दिनों रांची में ‘कैफोर्ड हाउस’ को तोड़कर नये सीरे से बनवाने की आधारशिला रखी. उनके विरोधी भी हेमंत सोरेन के इस फैसले को देखकर दांतो तले उंगली दबा रहे है.
क्या है कैफोर्ड हाउस?
बहुत कम लोग जानते होंगे कि रांची के कांके रोड स्थित सीएम आवास को ‘कैफोर्ड हाउस ‘ के नाम से जाना जाता था. अंग्रेजो के शासनकाल के दौरान इस आवास में तत्कालीन कमिश्नर रहा करते थे. लेकिन झारखंड के बाद इसे ‘मुख्यमंत्री आवास’ का दर्जा मिला. यह भवन करीब ढाई दशक तक राज्य में सत्ता के शीर्ष पद का गवाह बना रहा. इस दौरान इस आवास के साथ कई मिथक भी जुड़े.
एलियन ने कराया था इस भवन का निर्माण:
दरअसल, 1853 में बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर के प्रिंसिपल एजेंट थे कमिश्नर एलियन. उन्होंने इस भवन की नींव रखी थी. लेकिन भवन बनने से पहले ही एलियन का ट्रांसफर हो गया और कैफोर्ड ने पद संभाला. उनके पद संभालते ही भवन निर्माण में तेजी आई और साल भर के अंदर 1854 में ब्रिटिश हुकूमत ने कमिश्नर सिस्टम को लागू कर दिया. तब कैफोर्ड को छोटानागपुर का पहला कमिश्नर बनाया गया. वह इस हाउस में रहने वाले पहले अधिकारी बने. तभी से इस भवन को कैफोर्ड हाउस कहा जाने लगा.
मुख्यमंत्री आवास के साथ जुड़ी हैं कई कहानियां:
सीएम आवास होते हुए भी इस हाउस को अशुभ कहा जाता रहा. क्योंकि मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाला कोई नेता इस आवास में रहते हुए अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया. इस लिस्ट में बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, शिबू सोरेन और मधु कोड़ा का नाम शामिल है.
हालांकि, इस मिथक को रघुवर दास ने तोडा. वह पहले नेता रहे, जो इस आवास में रहते हुए बतौर मुख्यमंत्री पांच साल का कार्यकाल पूरा कर सके. हालांकि, रघुवर दास के आसपास रहने वाले उनके परिचित बताते है कि वे भी पांच साल तक शंका और आशंका से प्रभावित रहे. उन्होंने पांच साल तो इस आवास में किसी तरह पूरा कर लिया, लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव में रघुवर दास की सरकार बुरी तरह चुनाव हार गयी और वे कभी सत्ता में वापस नहीं लौट सके. यहां तक कि रघुवर दास राज्य के मुख्यमंत्री होते हुए अपनी विधानसभा सीट तक गवां बैठे. रघुवर दास ने यहां रहने के लिए कुछ वास्तु बदलाव करवाए थे. उन्होंने कांके रोड वाले गेट से आना-जाना करने के बजाए मोरहाबादी वाले गेट का इस्तेमाल किया. वहीं मुख्यमंत्री रहते हुए हेलिकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त होने पर अर्जुन मुंडा ने इसके कैंपस में हनुमान मंदिर का निर्माण करवाया था.
इस आवास का प्रभाव ऐसा था कि 13 जुलाई 2013 को पहली बार सीएम बनने के बावजूद हेमंत सोरेन इस आवास में नहीं गये. वह नेता प्रतिपक्ष वाले ही आवास में रहे जो सीएम आवास से बिल्कुल सटा हुआ है. वह सीएम आवास का इस्तेमाल सिर्फ बैठकों के लिए किया करते थे.
खास बात है कि 2024 में दोबारा सत्तासीन होने पर हेमंत सोरेन पहले ऐसे मुख्यमंत्री बने जिन्होंने अंग्रेजों के जमाने के कैफोर्ड हाउस को जमींदोज कर नया सीएम आवास बनाने पर बल दिया. उसी का नतीजा है कि भवन निर्माण विभाग की पहल पर नया सीएम आवास बन रहा है, जिसकी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आधारशिला रखी है. अब देखना है कि यह भवन कबतक बनकर तैयार होता है.