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झारखंड के आदिवासी बेटे ने संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठक में आदिवासियों की शिक्षा और अर्थव्यवस्था पर दुनिया को दिखाई दिशा, जमकर हुई सरहाना

Ranchi. स्व. रामदयाल मुंडा के सुपुत्र गुंजल मुंडा ने जिनेवा में आयोजित संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठक में पूरी दुनिया को आदिवासी परंपरा, संस्कृति और अर्थव्यवस्था पर दिशा दिखाई है। उन्होंने यहां आयोजित आदिवासी अधिकारों के लिए विशेषज्ञ तंत्र (EMRIP) के 18वें सत्र में एशियाई आदिवासी समुदायों की ओर से प्रतिनिधित्व किया। गुंजल ने अपने संबोधन में संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र (UNDRIP) के प्रभावी क्रियान्वयन पर बल दिया। उन्होंने कहा कि इस घोषणापत्र में निहित अधिकारों को धरातल पर उतारने की सख्त जरूरत है, ताकि आदिवासी समुदायों का समग्र विकास सुनिश्चित हो सके।

गुंजल ने कहा कि आदिवासी समुदायों की पारंपरिक आर्थिक प्रणालियां सिर्फ आजीविका का माध्यम नहीं, बल्कि उनकी जीवन-दृष्टि, संस्कृति और आत्मनिर्भरता का आधार हैं। उन्होंने आग्रह किया कि इन प्रणालियों को संरक्षण और समर्थन मिलना चाहिए। गुंजल मुंडा ने कहा कि वर्तमान पाठ्यक्रमों में आदिवासी जीवन-मूल्यों, भाषाओं और पारंपरिक ज्ञान को समुचित स्थान नहीं दिया गया है। गुंजल ने सुझाव दिया कि आदिवासी भाषाएं स्कूली पाठ्यक्रमों में शामिल हों, पारंपरिक ज्ञान को बढ़ावा दिया जाए, आदिवासी ज्ञानधारकों को औपचारिक शिक्षक की मान्यता मिले।

गुंजल ने सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि आदिवासी समुदायों को अपनी सांस्कृतिक विशेषताओं के आधार पर स्वतंत्र डेटा प्रणाली विकसित करने का अवसर मिलना चाहिए। इससे उनकी वास्तविक जरूरतें सामने लाई जा सकेंगी और अधिकारों की पहचान सुनिश्चित की जा सकेगी। गुंजल ने जोर देकर कहा कि जबरन भूमि अधिग्रहण और विस्थापन जैसी समस्याएं आदिवासी अस्तित्व पर संकट बनकर उभरी हैं। उन्होंने मांग की कि सरकारें सख्त कानूनी सुरक्षा उपाय लागू करें, आदिवासियों की आजीविका और संस्कृति की रक्षा सुनिश्चित हो।

गुंजल ने सभी देशों से अपील की कि वे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के अनुरूप नीतियां बनाएं और UNDRIP के उद्देश्यों को जमीन पर उतारने में गंभीरता दिखाएं।

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