कानून की कसौटी पर सरकार, विपक्ष का वार! जानिये किन प्रमुख संशोधनों को लेकर हो रहा है वक़्फ़ बिल का विरोध..
इस बहुचर्चित बिल के खिलाफ विपक्ष लगातार एकजुट है। कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने बिल को असंवैधानिक और एक समुदाय विशेष के खिलाफ बताया है। दोनों ही पार्टियां बिल के विरोध में वोटिंग करेगी।

Live Special. बहुचर्चित वक्फ बोर्ड संशोधन बिल आज लोकसभा में पेश होना है। करीब आठ घंटे की बहस के बाद इस बिल को आज रात तक लोकसभा से पारित कराया जाना है। नंबर गेम में मोदी सरकार अब भी आगे चल रही है। मगर इस बहुचर्चित बिल के खिलाफ विपक्ष लगातार एकजुट है। कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने बिल को असंवैधानिक और एक समुदाय विशेष के खिलाफ बताया है। दोनों ही पार्टियां बिल के विरोध में वोटिंग करेगी। वक्फ बोर्ड के पांच संशोधनों पर विवाद गहराया हुआ है। आपको विस्तार से बताते है कि किन बिंदुओं पर विवाद बना हुआ है। इससे आपको भी इस बिल के बारे में अधिक जानकारी मिल पाएगी। मगर इससे पहले ये जान लीजिये कि वक़्फ़ बोर्ड होता क्या है ?
वक़्फ़ का अर्थ इस्लामिक कानून के तहत दान की गई ऐसी संपत्ति या भूमि से है, जिसका उपयोग मुस्लिम धर्म से जुड़े कार्यो, समाजसेवा जैसे स्कूल निर्माण, अस्पताल भवन निर्माण, अनाथालय निर्माण, मस्जिद निर्माण आदि के लिए किया जाता है। कोई भी अपनी मर्जी से वक़्फ़ को अपनी संपत्ति दान कर सकता है। एक बार वक्फ को दान की गयी संपत्ति पर दोबारा संपत्ति का मालिक अपना दावा नहीं ठोक सकता। दान की गयी संपत्ति को दोबारा हासिल नहीं किया जा सकता है। भारत में ‘वक़्फ़ अधिनियम, 1995’ के तहत केंद्र और राज्य स्तर पर वक़्फ़ बोर्ड गठित किए गए हैं। इन वक्फ बोर्ड का काम वक़्फ़ संपत्तियों का संरक्षण, सामाजिक कार्यो के लिए वक़्फ़ की संपत्तियों के इस्तेमाल और सरकार को परामर्श देना होता है। वक़्फ़ से जुड़े विवादों के निपटारे के लिए वर्तमान में वक़्फ़ ट्रिब्यूनल बनाये गए है।
अब केंद्र सरकार इसी ‘वक़्फ़ अधिनियम, 1995’ में संशोधन के लिए बिल लेकर आयी है। आइये आपको विस्तार से बताते है कि किन पांच प्रमुख बिंदुओं पर विवाद की सुई अटकी हुई है।
पहला संशोधन: वक़्फ़ बोर्ड में दो गैर मुस्लिम सदस्य
वक़्फ़ इस्लाम धर्म का सबसे प्रमुख भाग है। वक़्फ़ की देखरेख, उसके संचालन के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के स्तर पर वक़्फ़ बोर्ड बनाया गया है। अबतक इस बोर्ड में सभी सदस्य मुस्लिम समुदाय से ही थे। मगर केंद्र सरकार का बिल कानून बना तो इस बोर्ड में कम से कम दो गैर मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना अनिवार्य होगा। धार्मिक बोर्ड होने के कारण इसका विरोध हो रहा है।
दूसरा संशोधन: संपत्ति पर सरकार का दावा
वर्तमान में वक़्फ़ संपत्तियों पर विवाद होने पर वक़्फ़ ट्रिब्यूनल में मामला जाता है। जिसके बाद वक़्फ़ संपत्ति पर दावे की जांच के बाद संपत्ति हस्तांतरण की कार्रवाई की जाती है। मोदी सरकार चाहती है कि वक़्फ़ ट्रिब्यूनल में राज्य सरकार का एक सीनियर अधिकारी हो, जो विवादों की जांच करे और संपत्ति का उचित हस्तांतरण कराएं। ऐसे में इस संसोधन का भी विरोध हो रहा है। विरोध में ये कहा जा रहा है कि ट्रिब्यूनल में सरकार के सचिव स्तरीय पदाधिकारियों के होने से ट्रिब्यूनल कमजोर हो जाएगा और अधिकांश मामलो में वक़्फ़ संपत्तियां सरकार को हस्तांतरित हो जाएंगी।
तीसरा संशोधन: अबतक वक़्फ़ के पास ऐसी भी कई संपत्तियां थी, जिसका कोई प्रामाणिक दस्तावेज वक़्फ़ बोर्ड के पास नहीं था। इसकी कोई जानकारी नहीं थी कि उस संपत्ति का असली मालिक कौन है, वक़्फ़ को कब दान की गयी। मगर उस संपत्ति पर भी वक़्फ़ का कब्जा होता था। ट्रिब्यूनल में सभी मुस्लिम सदस्यों के होने के कारण आसानी से संपत्ति वक़्फ़ बोर्ड को सौंप दी जाती थी। मगर सरकार इसपर लगाम लगाना चाहती है। अगर किसी संपत्ति का प्रामाणिक दस्तावेज वक़्फ़ बोर्ड के पास नहीं है, तो सरकारें उस संपत्ति को अपने कबजे में ले सकेंगी।
चौथा संशोधन: बिल के कानून बन जाने के बाद वक़्फ़ को दान की गयी संपत्तियों का विवरण एक निश्चित अवधि के अंदर सरकारी डाटाबेस में दर्ज कराना अनिवार्य होगा। वक़्फ़ संपत्तियों के विवरण में प्रामाणिक दस्तावेज भी उपलब्ध कराना होगा। बिना प्रामाणिक दस्तावेज के अगर डाटाबेस उपलब्ध नहीं कराया गया तो सरकार ऐसी संपत्तियों को वक़्फ़ से हासिल कर सकेगी।
पांचवा संशोधन: ट्रिब्यूनल का निर्णय अंतिम नहीं होगा
अगर किसी संपत्ति पर विवाद है, तो अबतक उसे वक़्फ़ ट्रिब्यूनल में सुलझा लिया जाता था। वक़्फ़ ट्रिब्यूनल का निर्णय ही अंतिम निर्णय होता था। नए संशोधन के मुताबिक़ अब वक़्फ़ ट्रिब्यूनल में सरकार का एक उच्चस्तरीय अधिकारी और जिला जज का होना अनिवार्य है। इतना ही नहीं, वक़्फ़ ट्रिब्यूनल का फैसला अंतिम फैसला नहीं माना जाएगा। ट्रिब्यूनल के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकेंगी।