भारतीय मानवाधिकार आयोग की ग्लोबल रैंकिंग में आयी गिरावट, वैश्विक स्तर पर भारत की साख पर पड़ेगा असर, जानिये भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा..
ग्लोबल एलायंस ऑफ नेशनल ह्यूमन राइट्स इंस्टिट्यूशन्स (GANHRI) द्वारा यह रैंकिंग जारी की गयी है। यह अंतराष्ट्रीय संस्था राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों की निगरानी करती है।

नयी दिल्ली. ग्लोबल एलायंस ऑफ नेशनल ह्यूमन राइट्स इंस्टिट्यूशन्स (GANHRI) द्वारा जारी ग्लोबल रैंकिंग में भारत के भारतीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) को ‘A’ दर्जे से हटाकर ‘B’ दर्जे में डाल दिया गया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रैंकिंग में गिरावट आने से भारतीय मानवाधिकार आयोग की स्वतंत्रता, प्रभावशीलता और पारदर्शिता पर सवाल उठने लगे है। ग्लोबल एलायंस ऑफ नेशनल ह्यूमन राइट्स इंस्टिट्यूशन्स (GANHRI) द्वारा यह रैंकिंग जारी की गयी है। यह अंतराष्ट्रीय संस्था राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों की निगरानी करती है। ग्लोबल एलायंस ऑफ नेशनल ह्यूमन राइट्स इंस्टिट्यूशन्स इसकी निगरानी करती है कि मानवाधिकारों के मोर्चे पर संयुक्त राष्ट्र के पेरिस सिद्धांतों का पूरी तरह पालन हो रहा है या नहीं। पैरिस सिद्धांत मानवाधिकार संस्थानों की स्वतंत्रता, पारदर्शिता, संरचना और कार्यप्रणाली के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानक निर्धारित करते हैं। A ग्रेड दर्जा मिलने का मतलब है कि संस्था पूरी तरह स्वतंत्र, राजनीतिक दखल से मुक्त, और मानवाधिकारों के संरक्षण में प्रभावी कार्य कर रही है। ‘A’ दर्जा प्राप्त मानवाधिकार संस्थानों को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UN Human Rights Council) और अन्य संयुक्त राष्ट्र निकायों में पूर्ण भागीदारी का अधिकार होता है, जिसमें बोलने, सिफारिशें देने और वोट करने का अधिकार भी शामिल है। इससे अंतर्राष्ट्रीय विश्वसनीयता और प्रभाव बढ़ता है। मानवाधिकार संस्थान की आवाज संयुक्त राष्ट्र में और बुलंद होती है।
‘B’ दर्जा पैरिस सिद्धांतो के अनुपालन में अनदेखी और लापरवाही को दर्शाता है। इसका मतलब है कि B दर्जा प्राप्त मानवाधिकार संस्थान पेरिस सिद्धांतों के सभी मानकों का पूरी तरह से पालन नहीं कर रहा है। ‘B’ दर्जा प्राप्त मानवाधिकार संस्थान संयुक्त राष्ट्र के सत्रों में भाग तो ले सकते है, लेकिन उनके पास वोटिंग, सिफारिशें देने का अधिकार और पूर्ण और प्रभावी रूप से अपनी बात रखने का अधिकार नहीं होता हैं। उनकी भागीदारी सीमित हो जाती है। ऐसे संस्थानों को संयुक्त राष्ट्र में केवल पर्यवेक्षक की भूमिका दी जाती है। यह दर्जा भारतीय मानवाधिकार आयोग की अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रभावशीलता को कम कर सकता है। साथ ही वैश्विक स्तर पर भारतीय मानवाधिकार आयोग की स्वतंत्रता और प्रभावशीलता को लेकर सवाल खड़े कर सकता है। यह भारत में मानवाधिकारों की स्थिति और संस्था की कार्यप्रणाली को लेकर वैश्विक चिंताओं को बढ़ाएगा।
भारतीय मानवाधिकार आयोग की रैंकिंग क्यों गिरी, क्या हो सकता है कारण
भारतीय मानवाधिकार आयोग की रैंकिंग में गिरावट भारत की वैश्विक साख के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। अनुसंधान एवं जांच में पुलिस अधिकारियों की भागीदारी में निष्पक्षता का अभाव, आयोग के सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और विविधता का अभाव, मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों पर प्रभावी कार्रवाई और अनुपालन सुनिश्चित करने में कमी, कार्यप्रणाली में पारदर्शिता की कमी तथा संस्था की स्वतंत्रता पर संदेह, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और हाशिए पर खड़े वर्गों के अधिकारों के प्रति प्रभावी कार्रवाई में ढिलाई, आयोग की सिफारिशों को सरकार द्वारा नजरअंदाज किया जाना इसके मुख्य कारण हो सकते है।