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कहीं आप भी तो नहीं हो रहे है डिजिटली गिरफ्तार ! साइबर क्राइम का नया तरीका बना डिजिटल अरेस्ट, जानिये क्या है डिजिटल अरेस्ट और कैसे इससे बचा जाए..

कुछ ऐसा ही हुआ पूर्वी सिंघभूम जिले के मऊभंडार में रहने वाले सेवानिवृत कर्मचारी उमेश (बदला हुआ नाम) के साथ। उमेश करीब छह घंटे तक डिजिटल अरेस्ट रहे

रांची. साइबर अपराधी बदलते दौर के साथ अपराध के तरीको को भी बदल रहे है। ये शातिर अपराधी अब पुलिस, प्रशासनिक पदाधिकारी, जांच एजेंसियों और रक्षा एजेंसियों का मुखौटा लगाकर मासूम और भोले भाले लोगो के खातों से पैसे खाली कर रहे है। कुछ ऐसा ही हुआ पूर्वी सिंघभूम जिले के मऊभंडार में रहने वाले सेवानिवृत कर्मचारी उमेश (बदला हुआ नाम) के साथ। उमेश करीब छह घंटे तक डिजिटल अरेस्ट रहे और साइबर अपराधियों की बातों में आकर उनके खाते में 90 लाख रुपये ट्रांसफर करने के लिए बैंक चले गए। पैसे ट्रांसफर करने के लिए उन्होंने अपना एफडी तक तोड़वा दिया और चेक बैंक में देकर आ गए। जब उन्हें अपने साथ हुए इस फ्रॉड की जानकारी मिली, तो वे सन्न रह गए। अपराधियों की शातिराना बातो में आकर उन्होंने अपने जीवनभर की पूंजी उनके अकाउंट में भेजने के लिए चेक दे दिया था, मगर बैंक मैनेजर की सूझ बूझ ने उन्हें ठगी का शिकार होने से बचा लिया। उमेश अकेले नहीं है, ऐसे कई पीड़ित है, जो आय दिन अपने साथ हुई धोखाधड़ी और ऑनलाइन जालसाजी की शिकायत लेकर साइबर थाना पहुंच रहे है।

क्या हुआ था उमेश के साथ ?

उमेश को 16 दिसंबर की सुबह एक अनजान नंबर से वीडियो कॉल आता है। वीडियो कॉल में एक अनजान महिला पुलिस की वर्दी पहनकर खुद को मुंबई साइबर थाने की एसीपी बता रही थी। उमेश को बताया गया कि किसी अन्य के द्वारा उनके खाते में साइबर ठगी कर पैसा भेजा गया है। महिला ने उमेश से 90 लाख रुपये उनके द्वारा बताये गए खाते में ट्रांसफर करने को कहा, ताकि ठगी का पैसा भेजने वाले को ट्रेस किया जा सके। महिला ने कहा कि छह घंटे में आपको आपका पैसा वापस मिल जाएगा। तबतक आपको घर में ही डिजिटल अरेस्ट किया जाता है। आप अपना फोन बंद नहीं करेंगे, और ना ही इसके बारे में किसी को कुछ बताएंगे। उमेश महिला की बातों में आ गए, और बैंक जाकर अपनी एफडी तुड़वाई। उन्होंने बैंक को महिला के बताये खाते में पैसा ट्रांसफर करने के लिए चेक भी सौंप दिया। उमेश काफी डरे हुए थे। बैंक मैनेजर प्रीती सोनल को शक हुआ तो उन्होंने उमेश के खाते से राशि हस्तांतरण पर रोक लगवा दी और स्थानीय थाना को इसकी सूचना दी। ओपी प्रभारी और बैंक मैनेजर ने उमेश को पूरी बात समझायी और बताया कि कैसे वे डिजिटल अरेस्ट के नाम पर साइबर ठगी का शिकार होते होते रह गए।

क्या होता डिजिटल अरेस्ट ?

डिजिटल अरेस्ट साइबर क्राइम का नया तरीका है। इसमें ठगी करने वाले अपराधी पुलिस, जांच एजेंसी, रक्षा एजेंसी के पदाधिकारी या कर्मचारियों की तरह आपसे बात करते है। वे आपको बताते है कि आप ठगी का शिकार हो गए है, आपके अकाउंट में ठगी का पैसा आया है। इसके बाद वे आपके डर से खेलते है। आपको जांच के नाम पर डिजिटल अरेस्ट कर लिया जाता है, जिससे आप ना तो किसी को कुछ बता सकते है और ना ही अपना फोन बंद कर सकते है। आपको गिरफ्तारी का भय दिखाकर आपके पर्सनल डिटेल मांगे जाते है, साथ ही जांच में सहयोग के नाम पर आपसे निजी जानकारियां भी मांगी जाती है। पुलिस पदाधिकारी का मुखौटा लगाकर ठगी को अंजाम देने वाले अपराधियों को लोग आसानी से पहचान नहीं पाते और अपनी सभी निजी जानकारियां, बैंक डिटेल्स सामने वाले ठग को बता देते है। फिर शुरू होता है बैंक खाते से पैसा निकालने का खेल। आप कुछ समझ पाएं, इससे पहले ही ठग आपका पैसा और जानकारी दोनों हासिल कर लेते है। ऐसे फोन कॉल आने पर कभी भी अपनी जानकारियां किसी को ना दे, बैंक डिटेल से जुडी जानकारी तो कभी भी सांझा ना करे। लगातार फोन आने पर पुलिस से इसकी शिकायत करे। ऐसे परिस्थिति में कभी भी डरे नहीं, धैर्य और सूझबूझ से काम ले।

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