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1932 खतियान, ओबीसी आरक्षण और मॉब लिंचिंग से संबंधित विधेयकों को संदेश के साथ वापस लौटाने की मांग को लेकर राजभवन पहुंचे INDIA गठबंधन के नेता, कहा- संवैधानिक तरीके से लौटाएं विधेयक

रांची: 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति, ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण और मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्या) से संबंधित विधेयकों को संवैधनिक तरीके से राज्य सरकार को वापस लौटाने की मांग को लेकर रविवार को इंडिया गठबंधन (जेएमएम, कांग्रेस, राजद) के राज्य समन्वय समिति के नेता राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन से मिलें. नेताओं ने राज्यपाल से अनुरोध करते हुए कहा कि झारखंड में पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण (संशोधन) विधेयक 2022, झारखंड स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा और परिणामी सामाजिक सांस्कृतिक और अन्य लाभों को ऐसे स्थानीय व्यक्तियों तक विस्तारित करने के लिए विधेयक 2022, और झारखंड (भीड़ हिंसा एवं भीड़ लिंचिंग निवारण) विधेयक 2021 को संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत संदेश के साथ राज्य सरकार को वापस लौटाएं. राजभवन द्वारा तीनों महत्वपूर्ण विधेयकों को संवैधानिक तरीके से वापस नहीं करने के कारण राज्य सरकार को इन विधेयकों को दोबारा विधानसभा से पास करने में परेशानी आ रही है. इंडिया गठबंधन के नेताओं ने राज्यपाल को पूर्व राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी और पूर्व राज्यपाल (वर्तमान राष्ट्रपति) द्रौपदी मुर्मू द्वारा लौटाए गए विधेयकों की प्रति भी सौंपी, जिसमे दोनों ही राज्यपालों द्वारा विधेयकों को लौटाए जाने के दौरान संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल का संदेश भी राज्य सरकार को भेजा गया था. इंडिया गठबंधन के नेताओं ने राज्यपाल से संदेश के साथ विधेयकों को लौटाने की मांग की. साथ ही बताया कि संवैधानिक तरीके से विधेयकों को लौटाए जाने के बाद राज्य सरकार इन्हे विशेष सत्र बुलाकर दोबारा पास करा सकती है. मगर विधेयकों को संवैधानिक तरीके से नहीं लौटाए जाने के कारण इन्हे दोबारा पास करना मुमकिन नहीं हो पा रहा है.

इंडिया गठबंधन के नेताओं ने कहा कि दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने महाजनों और सामंतवादी व्यवस्था के खिलाफ एक लंबी लड़ाई लड़ी, जिसके फलस्वरूप झारखंड अलग राज्य का गठन हुआ. उनके साथ लाखों आंदोलनकारियों और शहीद निर्मल महतो जैसे उनके साथियों ने अपने प्राणों का बलिदान दे दिया. उनकी लड़ाई ना केवल इस राज्य के आदिवासी-मूलवासी को उनका वाजिब हक अधिकार दिलाने को लेकर था, बल्कि यह झारखंडी अस्मिता और पहचान से भी जुड़ा हुआ था. झारखंड के आदिवासी-मूलवासियों, दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हित में राज्य सरकार द्वारा पास किये गए तीनों विधेयकों को राज्यपाल द्वारा संवैधानिक रूप से वापस नहीं किया जाना खेदजनक है.

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