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मजबूरी का ताज! रांची में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में बाबूलाल मरांडी की ताजपोशी, मगर भाजपा के इस मेगा इवेंट से नदारद रहे पार्टी के ही कई दिग्गज नेता

पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने एक गैर आदिवासी मुख्यमंत्री के रूप में पांच साल पूरा कर प्रदेश के पहले पूर्णकालिक मुख्यमंत्री बनने का गौरव भाजपा को दिलाया, मगर आज पार्टी ने उन्हें साइडलाइन कर दिया है. कुछ यहीं हाल केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा का भी है. 2014 तक अर्जुन मुंडा का नाम मुख्यमंत्री की रेस में हमेशा आगे रहा, मगर बीजेपी के प्रयोग के आगे मुंडा का युग ही खत्म हो गया.

रांची. झारखंड भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पहली बार बाबूलाल मरांडी ने आज प्रदेश अध्यक्ष का पदभार ग्रहण किया. बीजेपी ने इसे एक मैगा इवेंट का रूप देकर रांची में मरांडी की ताजपोशी करवाई. बाबूलाल मरांडी ने भी दिन के 10.30 बजे पार्टी के प्रदेश मुख्यालय जाकर पूजन हवन किया और उसके बाद कार्निवल बैंक्वेट हॉल के लिए निकल पड़े. बाबूलाल मरांडी के पदभार ग्रहण कार्यक्रम में पूर्व बीजेपी अध्यक्ष सह राज्यसभा सांसद दीपक प्रकाश, केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी समेत कई सांसद, विधायक और नेतागण मौजूद रहे.

बाबूलाल के शपथ में ही दिख गयी पार्टी की फूट: बाबूलाल मरांडी के पदभार ग्रहण को मेगा इवेंट बनाने की कोशिश में लगी बीजेपी के इवेंट मैनेजमेंट को उनके ही नेताओ ने धो डाला. पार्टी के इस ग्रैंड इवेंट से प्रदेश बीजेपी के ही बड़े नेताओ ने कन्नी काट ली. पटना लाठीचार्ज की जांच के नाम पर पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास आज पटना निकल गए, तो केंद्रीय मंत्री सह पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने केवल ट्वीट कर औपचारिकता निभा दी. इस कार्यक्रम में ज्यादात्तर वहीं सांसद और नेता दिखाई दिए, जो या तो जेवीएम के विलय के समय पार्टी से जुड़े थे, या रघुवर-मुंडा खेमे से जुड़े नहीं रहे है.

जबरन थोपा हुआ नेता: सूत्रों के मुताबिक़ पार्टी के कई नेताओ को बाबूलाल मरांडी का पार्टी में आना, पहले विधायक दल का नेता बनाने की कवायद और अब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में बाबूलाल मरांडी की ताजपोशी खटक रही है. रह रह कर पार्टी के समर्पित नेताओ के मन में इसका टीस सामने आ रहा है. दिमाग में अगर बाबूलाल को नेता मान भी ले, तो बीजेपी के नेताओ के दिल में मरांडी जगह नहीं बना पा रहे है.

इसी टूट का आइना आज रांची में देखने को मिला. पार्टी के वैसे नेता जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी भाजपा को दे दी, मगर उन्हें पद के नाम पर कुछ नहीं मिला. पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने एक गैर आदिवासी मुख्यमंत्री के रूप में पांच साल पूरा कर प्रदेश के पहले पूर्णकालिक मुख्यमंत्री बनने का गौरव भाजपा को दिलाया, मगर आज पार्टी ने उन्हें साइडलाइन कर दिया है. कुछ यहीं हाल केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा का भी है. 2014 तक अर्जुन मुंडा का नाम मुख्यमंत्री की रेस में हमेशा आगे रहा, मगर बीजेपी के प्रयोग के आगे मुंडा का युग ही खत्म हो गया. अब पार्टी ने आदिवासी चेहरे के नाम पर कड़िया मुंडा, नीलकंठ सिंह मुंडा जैसे नेताओ को दरकिनार कर बाबूलाल मरांडी को जो सम्मान दिया है. उसे पार्टी के नेता और कार्यकर्ता ही पचा नहीं पा रहे है.

जाहिर है बाबूलाल मरांडी के सिर पर कांटो का ताज दिया गया है, जबकि कार्यकर्ताओ को एक थोपा हुआ अध्यक्ष. इन दोनों के बीच तालमेल बिठाते हुए पार्टी को प्रचंड आदिवासी ब्रांड हेमंत सोरेन के आगे लड़ना है. मगर चुनावी मैदान में पार्टी की लड़ाई शुरू हो, उससे पहले ही बीजेपी के अंदर वैचारिक मतभेद और सियासी मजबूरियों का जंग शुरू हो गया है. इस न्यू नार्मल के लिए पार्टी के नेता और कार्यकर्त्ता मजबूरी में ही सही, खुद को ढाल लेना चाहते है.

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