
भारत अपनी धर्मनिरपेक्ष पॉलिसी के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है. हिंदुस्तान एक धर्मनिरपेक्ष देश है. और हमारा देश हर धर्म का सम्मान करता है. यही कारण है जब स्वीडेन का मामला दुनिया के सबसे बड़े मंच में आया, तो भारत के स्टैंड ने कट्टरवाद को करारा तमाचा मारा है. अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर सामाजिक सौहाद्र को बिगाड़ने और अराजकता फैलाने की मंशा रखने वाले देशो को भारत ने अपनी धर्मनिरपेक्षता से शांति और सद्भाव का संदेश दिया है. हाल ही में स्वीडेन में मुस्लिम धर्मग्रंथ कुरान शरीफ को जलाये जाने का एक मामला सामने आया था. इसके बाद कई मुस्लिम देशो में जमकर बवाल हुआ और स्वीडेन के दूतावासों पर हमले हुए. लोग स्वीडेन की सरकार से दोषी युवक को सजा देने की मांग कर रहे थे. मामले की गंभीरता को देखते हुए दुनिया की सबसे बड़ी संसद यूएन में मामला पहुंच गया. यूएन मानवाधिकार परिषद् में इस घटना के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाया गया, जहां भारत समेत 28 देशो ने इस प्रस्ताव का समर्थन कर स्टॉकहोम की घटना की भ्र्स्तना की. तो वहीं अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम, जर्मनी, रोमानिया, लिथुआनिया, कोस्टारिका, फ़िनलैंड जैसे पश्चिमी देशो ने इस प्रस्ताव के खिलाफ अपना वोट दिया.
दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति अमेरिका हो या विश्व के प्रभावशाली देशो में शामिल ब्रिटेन या फ्रांस, किसी को भी भारत के इस कदम के बारे में आभास नहीं था. भारत ने इस प्रस्ताव के पक्ष में जैसे ही अपना वोट दिया, इन देशो के होश उड़ गए. लगातार पश्चिम के देशो में भारत के खिलाफ जारी एजेंडा की हवा निकल गयी. जिसमे भारत के अंदर एक विशेष समुदाय को निशाना बनाये जाने की बात जोर देकर कही जाती है. मगर यूएन में भारत के रुख ने उन पश्चिमी देशो की पोल खोल दी, जो निशाना भारत को तो बनाते है, मगर जब बात किसी धर्म के भावनाओ और सम्मान की आये, तो हमेशा अपनी कूटनीतिक चाल से कट्टरता भरा जहर समाज में घोलने का काम करते है.