
रांची. बिहार बीजेपी के पहले प्रदेश अध्यक्ष, भाजपा के संस्थापक सदस्य और आरएसएस के स्वयंसेवक रह चुके कैलाशपति मिश्रा की प्रतिमा को लेकर अब रांची में विवाद हो गया है. अविभाजित बिहार के समर्थक रहे बिहार के बक्सर में जन्मे कैलाशपति मिश्रा की आदमकद प्रतिमा को आदिवासी मूलवासी संगठनो और झारखंड आंदोलनकारियों ने ध्वस्त करने की कोशिश की, मगर नाकाम रहे. रांची से बीजेपी सांसद संजय सेठ के सांसद निधि से यह प्रतिमा रांची के ऐतिहासिक बिरसा चौक के पास लगाई गयी है. जिसे आदिवासी संगठनो और झारखंड आंदोलनकारियों ने खंडित करने का प्रयास किया.
झारखंड आंदोलनकारियों का कहना था कि कैलाशपति मिश्रा का झारखंड या झारखंड आंदोलन से कभी कोई नाता नहीं रहा. झारखंड में कैलाशपति मिश्रा को कोई जानता तक नहीं. कैलाशपति मिश्रा अविभाजित बिहार के समर्थक थे, और अलग झारखंड राज्य के खिलाफ रहे. बावजूद इसके कैलाशपति मिश्रा की आदमकद प्रतिमा लगाकर भाजपा के नेता झारखंडियों की भावनाओ को भड़काने का काम कर रहे है. कैलाशपति मिश्रा भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे होंगे, मगर झारखंड में उनका कोई योगदान नहीं है. आंदोलनकारियों और आदिवासी मूलवासी संगठन के प्रतिनिधियों ने कहा कि आदमकद प्रतिमा लगानी ही है, तो झारखंड के महापुरुषों की लगाएं. चांद भैरव, तिलका मांझी, सिद्धो कान्हो, कार्तिक उरांव, निर्मल महतो, बिरसा मुंडा, जगरनाथ महतो आदि महापुरुषो की प्रतिमा लगाई जाए, बीजेपी अपने नेताओ को झारखंड में जबरन थोपने का काम ना करे. अदालत की रोक के बावजूद यहां कैलाशपति मिश्रा की प्रतिमा जबरन स्थापित की जा रही है, जो गैर कानूनी है. झारखंड विरोधियो का बोझ हम कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे.
उधर सांसद निधि के पैसो से बने कैलाशपति मिश्रा की प्रतिमा को खंडित किये जाने से भाजपाई नाराज हो गए है. भाजपा सांसद संजय सेठ ने आदिवासी मूलवासी संगठनो के द्वारा उठाये गए इस कदम की निंदा की है. बीजेपी सांसद संजय सेठ ने इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए दोषियों पर अविलंब कार्रवाई की मांग की है. मांडर से उपचुनाव हार चुकी गंगोत्री कुजूर ने भी इस मामले में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए थाने में आवेदन दिया है.
आपको बता दे कि कैलाशपति मिश्रा का जन्म 5 अक्टूबर को बिहार के बक्सर जिले में हुआ था. वे भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य थे. कैलाशपति मिश्रा राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ से भी लंबे समय तक जुड़े रहे. उन्हें गुजरात और राजस्थान का राज्यपाल भी बनाया गया था. कैलाशपति मिश्रा पूरे जीवन अविवाहित रहे और भारतीय जनता पार्टी के लिए ही अपना जीवन खपा दिया. इसीलिए उन्हें बीजेपी का भीष्मपितामह भी कहते है. कैलाशपति मिश्रा ने अविभाजित बिहार को लेकर काफी संघर्ष किया. वे जाति से भूमिहार थे, मगर बावजूद इसके लोग उन्हें कैलाशपति मिश्रा कहने के बजाय कैलाश जी ही कहना पसंद करते थे. तीन नवंबर 2012 को उनका देहांत हो गया था.
ऐसा पहली बार नहीं है, जब किसी नामकरण पर विवाद हुआ है. इससे पहले रांची कॉलेज का नाम बदलकर डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुख़र्जी के नाम पर किये जाने को लेकर भी झारखंड के आदिवासी मूलवासी संगठन आक्रोशित हो गए थे. झारखंड के आदिवासी मूलवासी और आंदोलनकारियों का मानना है कि बीजेपी अपने नेताओ के नाम पर ज्यादात्तर नामकरण कर क्षेत्रीय महापुरुषों के त्याग और बलिदान को नीचा दिखाने का काम करती है. संगठनो ने श्यामा प्रसाद मुख़र्जी विश्विद्यालय का नाम निर्मल महतो, रामदयाल सिंह मुंडा आदि के नाम पर करने का सुझाव पूर्व की भाजपा सरकार को दिया था, मगर अनेको प्रयासों के बावजूद भी बीजेपी की रघुवर सरकार ने संस्थान का नाम श्यामा प्रसाद मुख़र्जी के नाम पर रख दिया.