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स्पेशल रिपोर्ट: हेमंत का ‘खतियानी जोहार’, विरोधियों में हाहाकार

13 फरवरी से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपने खतियानी जोहार यात्रा के तीसरे चरण की शुरुआत करने जा रहे है. इस यात्रा के तहत मुख्यमंत्री चतरा और लातेहार जिलें में सभाओं को संबोधित करेंगे, योजनाओं की समीक्षा करेंगे और जनता से सीधा संवाद करेंगे. सीएम हेमंत सोरेन के खतियानी जोहार यात्रा के पिछले दो चरणों में मिली जबरदस्त सफलता और जन समर्थन से झामुमो और उसके सहयोगी दलों का हौसला बुलंद है. मगर सीएम हेमंत सोरेन की इस यात्रा से हेमंत विरोधियों की नींद उड़ गयी है. बीते उपचुनावों में सीएम हेमंत सोरेन के नाम पर मिले जन समर्थन ने विरोधियों के पसीने छुड़ा दिए है. हेमंत के खतियानी यात्रा का तीसरा चरण ऐसे वक्त में शुरू हो रहा है, जब बीते दिनों ही राज्यपाल ने 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति का विधेयक सरकार को वापस लौटा दिया है. हेमंत विरोधी जानते है कि सीएम हेमंत सोरेन इसे अपनी सभाओं में बड़ा मुद्दा बनाएंगे. और इन सभाओं में मुख्यमंत्री के बयानों का रामगढ़ के उपचुनाव में भी सीधा असर होगा. झारखंड में अबतक हुए सभी उपचुनावों में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का जादू साफ तौर पर देखने को मिला है. जनता मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ खड़ी दिखाई दी है.

‘हेमंत फैक्टर’ से हेमंत के विरोधियों को इतना डर है कि वे सीएम हेमंत सोरेन पर हमला करने और उनपर कीचड उछालने का कोई मौका नहीं छोड़ते है. फिर चाहे इसके लिए हेमंत विरोधियों को झारखंडियों के अधिकारों से समझौता ही क्यों ना करना पड़े. बीते 22 साल में सबसे अधिक 20 साल तक झारखंड में भाजपा-आजसू की ही सरकार रही. मगर इन दलों ने कभी झारखंडियों के हित में कोई नीति बनाने का काम नहीं किया. इनके शासन के दौरान झारखंड में बाहरियों का राज कायम हो गया. हर क्षेत्र में बाहरियों का दबदबा बढ़ गया. आज मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन झारखंडियों, आदिवासी मूलवासियों की बात कर रहे है. यही वजह है कि जिन दलों ने कभी 1932 को स्वीकार भी नहीं किया, वे भी मजबूरी में ही सही 1932 को लागू करने की बात कहने लगे है. विपक्ष के तमाम नेता एक मंच पर आ गए है, ताकि सीएम हेमंत सोरेन के करिश्माई नेतृत्व से लोहा लिया जा सके.

हेमंत के विरोधी जानते है कि झारखंडियों के हित की बात को लेकर वे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को नहीं घेर सकते, क्योंकि भाजपा-आजसू की सरकारों ने कभी 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति, सरना धर्म कोड या ओबीसी आरक्षण का मन से समर्थन नहीं किया. यहां तक कि पूर्व की रघुवर सरकार के दौरान जब 1985 को कटऑफ मानकर स्थानीयता परिभाषित की गयी, तो आजसू कोटे से रघुवर सरकार में मंत्री रहे चंद्रप्रकाश चौधरी ने इसे ‘ऐतिहासिक फैसला’ बताया था. और तो और जब 2002 में बाबूलाल मरांडी ने बीजेपी में रहते हुए 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति लागू करने की कोशिश की, तो उन्हें अपनी सरकार तक से हाथ धोना पड़ गया था. यानी कुल मिलाकर झारखंडी सरोकार से जुड़े मुद्दों पर विपक्ष के तमाम नेता मिलकर भी हेमंत सोरेन से मुकाबला नहीं कर सकते, क्योंकि विपक्ष कभी झारखंडियत के साथ खड़ा दिखाई ही नहीं दिया.

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