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सालखन मुर्मू ने पारसनाथ में जैन मंदिरों को तोड़ने की दी धमकी, भाजपा बोली- मरा हुआ घोडा है सालखन मुर्मू

रांची: मूल रूप से ओडिशा के मयूरभंज से ताल्लुक रखने वाले सालखन मुर्मू अब आदिवासियों और जैनियों के नाम पर झारखंड में नफरत का जहर फैलाने की कोशिश में जुट गए है. खुद को आदिवासियों का हमदर्द बताने वाले सालखन आदिवासियों की संस्कृति के उलट झारखंड में ‘बांटो और राज करो’ की सियासत की अगुवाई करने में लगे है. सालखन मुर्मू ने जैनियों और आदिवासियों के पवित्र धार्मिक स्थल पारसनाथ पर्वत (मरांग बुरु व शिखर सम्मेद जी) को लेकर समाज को बांटने और घृणा फैलाने वाला बयान दिया है. सालखन ने रांची में पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि अगर पारसनाथ आदिवासियों को नहीं सौंपा गया तो राम मंदिर आंदोलन की तर्ज पर पारसनाथ के जैन मंदिरों को ध्वस्त कर दिया जायेगा. बड़बोले और नफरती सालखन मुर्मू ने कहा कि अगर केंद्र सरकार और राज्य सरकार वार्तालाप कर समाधान करने की पहल नहीं करती है तो बाबरी मस्जिद की तरह जैन मंदिरों को ध्वस्त करने के लिए आदिवासी मजबूर हो सकते है. वहीं, सालखन मुर्मू के नफरती बोल पर भाजपा ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी है. बीजेपी विधायक सीपी सिंह ने सालखन मुर्मू को ‘डेड हॉर्स’ यानी मरा हुआ घोड़ा बताया है. सीपी सिंह ने सालखन मुर्मू को विचलित मानसिकता वाला व्यक्ति बताया है. सीपी सिंह ने कहा कि यह सच है कि पारसनाथ पहाड़ जैन धर्मावलंबियों और आदिवासियों, दोनों के लिए ही आस्था का केंद्र है. इसीलिए इस मामले का हल बातचीत कर निकाला जा सकता है. सीपी सिंह ने कहा कि इस तरह की भाषा शोभा नहीं देती और सालखन मुर्मू को शर्म आनी चाहिए. बीजेपी नेता ने कहा कि यदि सालखन सोचते है कि इस तरह की बयानबाजी करके वो दोबारा सांसद बन जायेंगे तो ऐसा नहीं होगा. सालखन मुर्मू डेड हॉर्स यानी मरा हुआ घोड़ा है.

आदिवासी संगठनों ने भी किया सालखन के बयान से किनारा:

बड़बोले सालखन मुर्मू के जैन मंदिरों को लेकर दिए विवादित बयान पर आदिवासी संगठनों ने भी नाराजगी जताई है. आदिवासी संगठनों ने जैन मंदिरों को ध्वस्त करने संबंधी सालखन के बयान से किनारा करते हुए बयान की कड़ी आलोचना और निंदा की है.

जयराम महतो और हेमंत सोरेन से सीखे सालखन:

झारखंड का आदिवासी समाज अमन पसंद समुदाय है. झारखंड ने हमेशा से नफरती एजेंडों को धाराशायी किया है. जब 2017 में बीजेपी सांसद जयंत सिन्हा द्वारा अलीमुद्दीन के हत्यारों को माला पहनाकर सम्मानित किया गया था, उसके बाद झारखंड में 2019 के चुनावों में बीजेपी की करारी हार हुई. सालखन को नहीं भूलना चाहिए कि हर प्रदेश और समाज की अपनी एक अलग पहचान और संस्कृति होती है. झारखंड के आदिवासी मूलवासी समाज ने अपना अधिकार लेने के लिए संघर्ष के रास्ते को चुना है, ना की दमन के रास्ते को. इतना ही नहीं, अगर ओडिशा के सालखन मुर्मू को झारखंड में नफरत फैलाकर ये लग रहा है कि वे यहां लोकप्रिय हो जायेंगे तो उन्हें जयराम महतो और हेमंत सोरेन से सीख लेने की जरुरत है. आंदोलन से उभरे जयराम महतो ने कभी किसी समाज या प्रांत के लोगों के लिए घृणा या नफरत की भाषा का इस्तेमाल नहीं किया. वो शालीनता से अपनी बात रखते है और लोगों से भी प्रेम और भाईचारे को बढ़ावा देने की बात करते है. उन्होंने अपने आंदोलन के दौरान कभी बिहार या उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए नफरत भरा बयान नहीं दिया. ना ही किसी को धमकी दी. इसीलिए आज जयराम महतो को झारखंड के लोग अदब के साथ सुनते है और सराहते है. यही हाल हेमंत सोरेन का भी है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बड़े सौम्य स्वाभाव के है. वे अपनी बात पूरी निडरता के साथ रखते है. लेकिन हेमंत के बयानों में भी शालीनता की चमक होती है. चाहे झारखंड आंदोलन के दौरान की बात हो, या स्थानीय नीति को लेकर झारखंडियों के हक अधिकारों की बात हो. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बड़ी सहजता से अपनी बात रख देते है. यही वजह है कि हेमंत सोरेन झारखंड के सबसे लोकप्रिय नेता के तौर पर पहचान बना चुके है. और झारखंड की जनता लगातार हर चुनाव में हेमंत के चेहरे पर भरोसा जताती है. सालखन को जयराम महतो और हेमंत सोरेन से सीखने की जरुरत है की कैसे बिना नफरती बोल के भी लोगों के दिलों में जगह बनायी जा सकती है और अपनी बात को रखा जा सकता है.

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