स्पेशल रिपोर्ट: बूढ़ा पहाड़ में आदिवासी सीएम की दहाड़, हेमंत ने वादा निभाया, बूढ़ा पहाड़ तक विकास पहुंचाया
हेमंत के विरोधी भी मानते है कि अगर सीएम हेमंत सोरेन ने कोई कमिटमेंट कर दिया है, तो फिर वे उसे हर हाल में पूरा करते है. फिर चाहे वो 1932 का खतियान लागू करने की बात हो, आदिवासियों के लिए अलग सरना धर्म कोड देने की बात हो या ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिलाने की बात हो.

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपने साहसिक फैसलों की वजह से झारखंड ही नहीं बल्कि देश भर में “हिम्मत वाले सीएम” के तौर पर जाने जाते है. हेमंत सोरेन ने अपनी पहचान एक ऐसे सीएम के तौर पर बना ली है, जिसकी जिद और हौसले के आगे बड़ी से बड़ी चुनौती भी छोटी लगने लगती है. हेमंत के विरोधी भी मानते है कि अगर सीएम हेमंत सोरेन ने कोई कमिटमेंट कर दिया है, तो फिर वे उसे हर हाल में पूरा करते है. फिर चाहे वो 1932 का खतियान लागू करने की बात हो, आदिवासियों के लिए अलग सरना धर्म कोड देने की बात हो या ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिलाने की बात हो. सीएम हेमंत सोरेन जनता से किया अपना हर वादा निभाते है, फिर चाहे इसके लिए उनकी सरकार ही खतरे में क्यों ना आ जाए. मगर कभी-कभी सीएम हेमंत सोरेन ऐसे हिम्मत वाले फैसले भी लेने से पीछे नहीं हटते, जिसे लेने से पहले दूसरे नेता सौ बार जरूर सोचते है. फिर चाहे वो ‘नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज’ की अवधि विस्तार को रद्द करके आदिवासियों को अधिकार देने का फैसला हो, या नक्सलियों के गढ़ बूढ़ा पहाड़ में जाकर विकास योजनाओं की सौगात देने और समीक्षा करने का फैसला हो. सीएम हेमंत सोरेन हर फैसला डंके की चोट पर लेते है.
झारखंड का बूढ़ा पहाड़ वो इलाका है, जहां रात में तो दूर, दिन में भी कोई सपने में भी जाने की हिम्मत नहीं करता. बूढ़ा पहाड़ के इलाके को हार्डकोर नक्सलियों की राजधानी और पावर हब माना जाता है. यहां बंगाल, बिहार, ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ के नक्सली अपने नापाक मंसूबों को पूरा करने के लिए रणनीति तैयार करते है. कहा तो ये भी जाता है कि इसी इलाके से नक्सली और माओवादी संगठन पांचों राज्यों में हथियारों की सप्लाई से लेकर नकली नोटों के गोरखधंधे को भी अंजाम देते है. हाल के वर्षो में सुरक्षा बालों और झारखंड पुलिस के साझा ऑपरेशन की वजह से इस पूरे इलाके में नक्सलियों का सफाया हो गया है, लेकिन कुछ वर्ष पहले तक यहां इतनी शांति नहीं थी. दिन-रात नक्सलियों के गोलियों की गूंज सुनाई देती थी. नक्सलियों द्वारा बिछाये गए लैंडमाइंस के विस्फोट से पूरा इलाका दहल जाता था. हालात इतने बदतर थे कि यहां के ग्रामीणों को ये तक नहीं मालूम था कि बूढ़ा पहाड़ क्षेत्र से बाहर भी कोई दुनिया है. नक्सलियों ने इस पूरे इलाके और यहां के ग्रामीणों को एक ही इलाके तक कैदकर रख दिया था. ना किसी को यहां से बाहर जाने की इजाजत थी, और ना ही किसी को बूढ़ा पहाड़ क्षेत्र में घुसने की इजाजत थी.
मगर अब हालात बदल रहे है. बूढ़ा पहाड़ से नक्सलवाद का कलंक मिटाने के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस पूरे इलाके को अपने संरक्षण में ले लिया है. सीएम हेमंत सोरेन खुद बूढ़ा पहाड़ के इलाके में जाकर ग्रमीणों से मिल रहे है और यहां के लिए विकास योजनाओं की सौगात दे रहे है. सीएम हेमंत सोरेन ने हाल ही में बूढ़ा पहाड़ के विकास के लिए 100 करोड़ की योजनाओं की शुरुआत की है. इसे बूढ़ा पहाड़ डेवलपमेंट प्रोजेक्ट यानी बीपीडीपी के नाम से लागू किया गया है.
बूढ़ा पहाड़ डेवलपमेंट प्रोजेक्ट की मदद से उन लोगों और गांवों का विकास होगा, जो दशकों तक सरकारी योजनाओं से वंचित थे. इसके जरिये हेमंत सरकार ने गढ़वा जिले की टेहरी पंचायत के 11 गांवों और लातेहार जिले की अक्सी पंचायत के 11 गांवों का सम्पूर्ण विकास करने का फैसला किया है. बीपीडी प्रोजेक्ट के तहत 22 गांवों के कुल 11 हज़ार लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाया जायेगा. इन गांवों में आधारभूत संरचना जैसे सड़क, पल-पुलिया, आंगनबाड़ी केंद्र, स्वास्थ्य केंद्र खुलेंगे, जहां लोगों को बेहतर इलाज मिल सकेगा. इन गांवों में सिंचाई की सुविधा के साथ-साथ खेल के मैदान भी विकसित किये जायेंगे. इसके अलावा सर्वजन पेंशन योजना, आवास योजना, अंत्योदय राशन कार्ड, मनरेगा जॉब कार्ड, दीदी बाड़ी योजना, मुख्यमंत्री पशुधन योजना, मुख्यमंत्री रोजगार सृजन योजना समेत कई सरकारी योजनाओं का लाभ भी ग्रामीणों तक पहुंचाया जायेगा. आपको बता दें कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इसी साल 27 जनवरी को बूढ़ा पहाड़ के घोर नक्सल प्रभावित गांवों में गए थे. उन्होंने यहां के ग्रामीणों से सीधा संवाद किया था और विकास योजनाओं को लागू करने का वादा किया था. सीएम के पहुंचने के बाद ही बूढ़ा पहाड़ क्षेत्र के झाऊल डेरा में 25 केवी और हेसातू, बहेरा टोली, तुमरा, खपरी महुआ, तुरेर, पोलपोल गांव को सौर ऊर्जा से रौशन करने की योजना पर काम शुरू हो गया.