भाषा मामले में राजनीति करने वालो पर सीएम हेमंत सोरेन ने साधा निशाना, बोले – गांवो में लोग संथाली, हो, खोरठा, मुंडारी भाषा बोलते है, कोई बाहरी अफसर गांव जाएगा, तो भाषा कैसे समझेगा ?, क्या नीति बनाएगा ?
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में हमने नियोजन नीति झारखंडियों के हित में ही बनाया था. मगर भाजपा के वरिष्ठ नेता और यूपी बिहार के 20 लोग मिलकर झारखंडियों के हित में बनी नीति को रद्द कराने के लिए कोर्ट पहुंच जाते है. इन लोगो को झारखंड की स्थानीय भाषाएं नहीं आती. इसीलिए इन्हे नियोजन नीति से तकलीफ थी.

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने नियोजन नीति में भाषा विवाद पर आज बड़ा बयान दिया है. मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में हमने नियोजन नीति झारखंडियों के हित में ही बनाया था. मगर भाजपा के वरिष्ठ नेता और यूपी बिहार के 20 लोग मिलकर झारखंडियों के हित में बनी नीति को रद्द कराने के लिए कोर्ट पहुंच जाते है. इन लोगो को झारखंड की स्थानीय भाषाएं नहीं आती. इसीलिए इन्हे नियोजन नीति से तकलीफ थी. और इसीलिए अपनी तकलीफ मिटाने के लिए यूपी बिहार के लोग कोर्ट चले गए. ताकि नियोजन नीति रद्द हो जाए.
सीएम ने कहा कि झारखंड के गांवो में जाने से ऐसे लोग मिलेंगे जिन्हे हिंदी या इंग्लिश नहीं आती. यहां के गांवो में संथाली, खोरठा, हो भाषाएं बोली जाती है. अगर कोई बाहरी अधिकारी गांव गया, तो वो गांव वालो की भाषा को क्या समझेगा. और अगर वो भाषा ही नहीं समझ सके, तो उनके लिए क्या नीतियां बनाएगा ? भाषा का महत्त्व ग्रामीण क्षेत्रों में जाने से पता चलता है. भाजपा सरकार में स्थानीय भाषाओ को सिलेबस में तो शामिल किया गया था, मगर वे उसका नंबर नहीं जोड़ते थे.
सरना धर्म कोड क्यों नहीं दिलवाती भाजपा : हेमंत सोरेन ने कहा कि आज भाजपा के लोग सरना सम्मलेन कर रहे है. सरना की बात करने लगे है. आदिवासी मूलवासियो को माला पहना रहे है. मगर इतना कुछ करने के बाद भी केंद्र सरकार से सरना धर्म कोड पर मुहर नहीं लगवा पा रहे है. बीस साल तक इन्होने मखमल की खाट पर समय बिताया है, अब एक मुखौटा के रूप में बाबूलाल मरांडी को आगे कर औपचारिकता निभा रहे है. भाजपा का कोई नेता नहीं है. बाबूलाल भी केवल ट्विटर में आदिवासियों को ज्ञान देते है. अब आदिवासी इनकी चिकनी चुपड़ी बातों में नहीं आएंगे.