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शीतकालीन सत्र से पहले सरकार को हाईकोर्ट से बड़ा झटका : हेमंत सरकार की संशोधित नियुक्ति नीति रद्द, अदालत ने बताया असंवैधानिक

झारखंड की हेमंत सरकार को शीतकालीन सत्र से पहले उच्च न्यायलय से बड़ा झटका लगा है. मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने हेमंत सरकार की संशोधित नियुक्ति नियमावली को गलत और असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द कर दिया है. पूर्व में सुनवाई के दौरान सरकार के वकील परमजीत पटलिया ने याचिका का विरोध करते हुए याचिका रद्द करने की मांग की थी. मगर प्रार्थी के अधिवक्ता अजीत कुमार ने सुनवाई पूरा करने का आग्रह किया. सुनवाई की प्रक्रिया पूरी होने के बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. आज इस मामले में बड़ा फैसला सुनाया गया.

याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि सरकार के द्वारा लागू की गयी नियुक्ति नियमावली असंवैधानिक है. इससे मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है. अतः इसे रद्द कर असंवैधानिक घोषित किया जाए. याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि सरकार के द्वारा संशोधित नियमावली के तहत जेएसएससी की परीक्षाओ में वहीं शामिल हो सकेंगे जिन्होंने झारखंड से दसवीं और बारहवीं की परीक्षा पास की हो. झारखंड के वैसे निवासी जिन्हे आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा रहा है. सिर्फ उनपर ही ये नियम लागू होगा. जिन्हे आरक्षण का लाभ झारखंड में मिल रहा है, उन वर्गों के लिए इन नियमो को शिथिल रखा गया है. यह सरासर गलत है.

याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि झारखंड के सभी सरकारी स्कूलों में हिंदी माध्यम से पढ़ाई होती है. सर्वाधिक हिंदी भाषी लोग है. लेकिन इस संशोधित नियमावली से मातृभाषा हिंदी को हटा दिया गया है. जो भाषा एक ख़ास वर्ग के लिए है. उसी उर्दू को जोड़ दिया गया है. ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यह नियम किसी ख़ास वर्ग के लिए बनाया गया है. यह असंवैधानिक है, इसे निरस्त किया जाये.

याचिकाकर्ता रमेश हांसदा की याचिका पर फैसला सुनाते हुए आज मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने हेमंत सरकार की संशोधित नियोजन नीति को गलत और असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द कर दिया है.

अब आगे क्या होगा : झारखंड हाईकोर्ट के फैसले का असर राज्य की सभी प्रतियोगी परीक्षाओ पर समान रूप से होगा. सरकार अगर अपने नियुक्ति नियमावली के साथ खड़ी रही, तो उसे सुप्रीम कोर्ट में जाकर हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देनी होगी. सरकार अगर हाईकोर्ट का फैसला मानती है, तो हेमंत सरकार को अपनी नियुक्ति नियमावली में संशोधन करना होगा. इससे परीक्षाओ और नियुक्तियों में विलंब होगा. जिसका असर युवाओ के भविष्य पर पड़ेगा.

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