
रांची: झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार आदिवासी-मूलवासियों को अलग पहचान दिलाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है. चाहे बात सरना धर्म कोड की हो, नेतरहाट फायरिंग रेंज की हो, पत्थलगड़ी समर्थकों से फर्जी देशद्रोह के मुकदमे वापस लेने के संबंध में हो, या 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति की. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी-मूलवासियों से किया अपना हर वादा ना सिर्फ निभा रहे है, बल्कि आदिवासियों की सदियों पुरानी परंपराओं-विरासतों को राष्ट्रिय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहेजने और संरक्षित करने का भी काम कर रहे है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अब आदिवासियों की सदियों पुरानी चिकत्सा पद्धति “होडोपैथी” को राष्ट्रिय पहचान दिलाने के लिए पहल शुरू कर दी है. सीएम हेमंत सोरेन ने आदिवासी चिकित्सा ज्ञान, परंपरा और पद्धति को संरक्षित करने का फैसला कर लिया है. इसके तहत होडोपैथी को आयुष में शामिल करने के लिए झारखंड सरकार की ओर से जल्द ही प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा जायेगा. साथ ही होडोपैथी के वैज्ञानिक अध्ययन, विश्लेषण के लिए विश्वस्तरीय प्रयोगशाला भी स्थापित की जाएगी. पिछले दिनों मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और कल्याण मंत्री चम्पई सोरेन के नेतृत्व में हुई झारखंड जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) की बैठक में ये निर्णय लिया गया.
इधर, होडोपैथी ज्ञान के प्रचार-प्रचार को लेकर होडोपैथी एथ्नोमेडीसीन डॉक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (हेदान) कई वर्षों से प्रयासरत है. एथ्नोबोटानिस्ट डॉ. अनिल गोयल और प्लांट साइंटिस्ट डॉ. राधाकृष्णन के अलावा ट्राइबल इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने भी सीएम हेमंत सोरेन की इस पहल का स्वागत किया है. हेदान भी सरकार को प्रयोगशाला के लिए पांच एकड़ जमीन देने के लिए तैयार है.
क्या है होडोपैथी?
होडोपैथी एक ऐसी आदिवासी चिकित्सा पद्धति है, जो मुंडा समाज की देशज उपचार विधि द्वारा इजात बतायी जाती है. होडोपैथी यानी आदिम जनजातियों की पद्धति. झारखंड के आदिवासियों ने जंगलों में फलने-फूलने वाले पेड़-पौधे की पत्तियों, तने, जड़, छाल और फल-फूल से मलेरिया और कालाजार जैसी गंभीर बिमारियों के उपचार के लिए औषधि की खोज की. वर्षो पहले इन दोनों बिमारियों के लिए खोजी गयी औषधि को सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टिट्यूट ने अपने शोध में सही माना और इसे मान्यता दी. लेकिन आदिवासियों की जिस चिकित्सा पद्धति के कारण कालाजार और मलेरिया जैसी गंभीर बिमारियों के औषधि की खोज हुई, उसे आज तक पहचान नहीं मिल सकी है. अब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासियों की इस अनमोल विरासत को पहचान दिलाने की कोशिश में जुट गए है.