
रांची: नहाय-खाय के साथ शुक्रवार से चार दिवसीय लोक आस्था का महापर्व शुरू हो गया. सुबह से ही राजधानी के विभिन्न जलाशयों पर व्रतियों की भीड़ लगी रही. स्नान के बाद व्रती महिलाओं ने एक-दूसरे की मांग में सिंदूर लगाया. आज व्रती पवित्र स्नान के बाद कद्दू की सब्जी, अरवा चावल का भात, चने की दाल, आंवले की चटनी, लौकी का बजका आदि प्रसाद ग्रहण करेंगी. 29 अक्टूबर शनिवार को खरना, 30 अक्टूबर को सांध्यकालीन अर्घ्य और 31 अक्टूबर की सुबह प्रात:कालीन अर्घ्य दिया जाएगा. इसके बाद पारण कर व्रती अपना उपवास तोड़ेंगी. इसके साथ ही पर्व का समापन हो जाएगा.
मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए है छठ व्रत:
सूर्य षष्ठी का व्रत मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए किया जाता है. स्कंद पुराण के मुताबिक राजा प्रियव्रत ने भी यह व्रत रखा था. उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था. भगवान भास्कर से इस रोग की मुक्ति के लिए उन्होंने छठ व्रत किया था. स्कंद पुराण में प्रतिहार षष्ठी के तौर पर इस व्रत की चर्चा है. वर्षकृत्यम में भी छठ की चर्चा है. प्रत्यक्ष देव भगवान भास्कर को सप्तमी तिथि अत्यंत प्रिय है. विष्णु पुराण के अनुसार तिथियों के बंटवारे के समय सूर्य को सप्तमी तिथि प्रदान की गई. इसलिए उन्हें सप्तमी का स्वामी कहा जाता है. सूर्य भगवान अपने इस प्रिय तिथि पर पूजा से अभिष्ठ फल प्रदान करते हैं.
छठ महापर्व के पहले दिन नहाय-खाय में लौकी की सब्जी, अरवा चावल, चने की दाल, आंवला की चटनी के सेवन का खास महत्व है. खरना के प्रसाद में ईख के कच्चे रस, गुड़ के सेवन से त्वचा रोग, आंख की पीड़ा समाप्त हो जाती है. वहीं इसके प्रसाद से तेजस्विता, निरोगिता व बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होती है. छठ महापर्व शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि का पर्व है. वैदिक मान्यताओं के अनुसार नहाय-खाय से छठ के पारण सप्तमी तिथि तक उन भक्तों पर षष्ठी माता की कृपा बरसती है, जो श्रद्धापूर्वक व्रत-उपासना करते हैं. प्रत्यक्ष देवता सूर्य को पीतल या तांबे के पात्र से अर्घ्य देने से आरोग्यता का वरदान मिलता है.