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पहले नहीं हैं सचिन पायलट, अशोक गहलोत के जादू से नटवर सिंह हो चुके हैं छूमंतर; पढ़िये ये रिपोर्ट

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि वह स्थायी जादूगर है। प्रदेश में उनका जादू स्थायी है।गहलोत से सियासी छू मंतर से गायब होने वालों में पायलट ही नहीं नटवर सिंह का नाम भी शामिल है।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बीते गुरुवार को कहा कि वह स्थायी जादूगर हैं और प्रदेश में उनका जादू स्थायी है। उन्होंने प्रदेश की जनता से यह अपील भी की कि अगले विधानसभा चुनाव में उनकी सरकार को फिर से मौका दें। सीएम गहलोत के सियासी मंतर से छू मंतर होने वाले सचिन पायलट पहले व्यक्ति नहीं है। पायलट से पहले गहलोत राजस्थान के बड़े-बड़े दिग्गजों को सियासी मात दे चुके हैं। राजस्थान में पार्टी नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त है। गांधी परिवार को वफादार रहे के. नटवर सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी, दिग्ग्ज जाट नेता परसराम मदेरमा, रामनिवास मिर्धा, नाथूराम मिर्धा, पं. नवलकिशोर शर्मा, सीपी जोशी और स्वर्गीय राजेश पायलट को सियासी शिकस्त देने में सीएम गहलोत सफल रहे हैं। हालांकि, सीएम गहलोत ने यह बयान प्रधानमंत्री की कांग्रेस के संदर्भ में की गई ‘काला जादू’ वाली टिप्पणी को लेकर यह दिया था। लेकिन सीएम गहलोत का यह बयान राजस्थान में कांग्रेस के भीतर चली रही अंदरुनी खींचतान से भी जोड़कर देखा जा रहा है।

1998 में सीएम के प्रबल दावेदार थे नटवर सिंह

पूर्व केंद्रीय नटवर सिंह और सीएम अशोक गहलोत के बीच राजस्थान की राजनीति में कभी दोस्ती और कभी तकरार जैसे संबंध रहे हैं। नटवर सिंह हमेशा राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रहे। प्रदेश की राजनीति में कम सक्रिय रहे। लेकिन दोनों नेताओं के संबंधों में उतार-चढ़ाव रहा। 1998 में हुए विधानसभा चुनाव में राजस्थान की कुल 200 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस 153 सीटें जीतने में सफल रही थी। अब बारी थी कांग्रेस विधायक दल नेता चुनाव की थी। पहला दावा था, जाट नेताओं का था। नटवर सिंह प्रबल दावेदार थे। दूसरी दावेदारी जाट नेता परसराम मदेरणा की थी। परसराम मदेरणा जाट समुदाय से आते थे और कांग्रेस के दिग्गज नेता माने जाते थे। पुराने कांग्रेसी थे। मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार। ये फैक्टर अब मायने रखता था। कांग्रेस में राव-केसरी दौर बीत चुका था और अब सोनिया कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष थीं।

बलराम जाखड़ ने सुलझाया मामला

राजस्थान के तत्कालीन कांग्रेस प्रभारी माधव राव सिंधिया के अलावा गुलाब नबी आजाद, मोहसिना किदवई और बलराम जाखड़ एक होटल में रुके हुए थे। बलराम जाखड़ एक खास मामला सुलझाने के लिए होटल से बाहर गए हुए थे।  बाकी के नेता बारी-बारी से नए चुने हुए विधायकों को तलब कर रहे थे। मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए, इस सवाल पर राय ली जा रही थी। विधायकों की पसंद जानने के बाद उन्हें एक लाइन में जवाब दिया जाता। ऐसे में गहलोत की बाजी नटवर सिंह और परसराम मदेरणा पर भारी पड़ी। नटवर सिंह और परसराम मदेरणा ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दावा छोड़ दिया। सबने मैडम सोनिया की इच्छा को मान लिया। अशोक गहलोत की प्रदेश के नए मुख्यमंत्री के तौर पर ताजपोशी हुई। हालांकि, फैक्ट यह भी है कि जब माधवराव सिंधिया और बलराम जाखड़ विधायकों की राय जान रहे थे, अधिकांश विधायकों का समर्थन सीएम गहलोत के पक्ष में था। लेकिन जातीय समीकरण सीएम गहलोत के पक्ष में नहीं थे।

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