Ranchi. झारखंड में जहां युवा डिग्रियां हाथ में लेकर नौकरियों के लिए भटक रहे हैं, वहीं राज्य की सियासत अपने लिए अवसर तलाशने में व्यस्त नजर आ रही है। एक ओर जेपीएससी से लेकर जेईपीसी तक वर्षों से पद रिक्त पड़े हैं और सरकार पांच पद पर भी नियुक्ति करने में नाकाम दिख रही है, वहीं दूसरी ओर संवेदना के नाम पर बिहार की एक डॉक्टर पर सुविधाओं की बरसात ने राजनीतिक बहस को तेज कर दिया है। बिहार में महिला डॉक्टर डॉ. नुसरत परवीन के साथ हुई शर्मनाक घटना के बाद झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी द्वारा सोशल मीडिया पर की गई घोषणा ने सियासी हलकों में नया विवाद खड़ा कर दिया है। मंत्री ने डॉ. नुसरत परवीन को झारखंड में मनचाही पोस्टिंग, स्थायी सरकारी नौकरी और तीन लाख रुपये मासिक वेतन देने की घोषणा की, जिसे लेकर विपक्ष, विशेषज्ञों और युवाओं के बीच गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
हाल ही में स्वास्थ्य विभाग द्वारा चिकित्सा पदाधिकारियों और विशेष चिकित्सा पदाधिकारियों की नियुक्तियां की गईं, लेकिन ये नियुक्तियां स्थायी नहीं बल्कि संविदा पर की गईं। आज सरकारी नियुक्तियों में संविदा व्यवस्था आम हो चुकी है। सत्ता में आने से पहले संविदा के खिलाफ बड़े-बड़े वादे करने वाले नेता सरकार बनते ही नीति और सुर दोनों बदल लेते हैं। युवाओं का आरोप है कि सरकारी नौकरी की तलाश में लगे उम्मीदवारों को संविदा की “घंटी” थमा दी जाती है, जिसे बजाते-बजाते उनकी पूरी उम्र निकल जाती है। अगर वे आगे बेहतर अवसर तलाशें तो नौकरी जाने का संकट और अगर नौकरी बचाने पर ध्यान दें तो अवसर खत्म। लेकिन संवेदना की सियासत में तस्वीर बिल्कुल अलग नजर आती है, मनचाही पोस्टिंग, भारी वेतन, सरकारी फ्लैट और स्थायी नौकरी, वह भी मंत्री की इच्छा से।
विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी राज्य में सरकारी नियुक्ति के लिए तय नियम, चयन प्रक्रिया और प्रतियोगी परीक्षाएं होती हैं। झारखंड में हजारों युवा डॉक्टर वर्षों से नियमित नियुक्ति और बेहतर वेतन की मांग कर रहे हैं। ऐसे में बिहार की एक घटना के बाद झारखंड में विशेष ऑफर की घोषणा से स्थानीय डॉक्टरों में भी असंतोष देखा जा रहा है। सवाल यह उठ रहा है कि अगर सम्मान और संवेदना का यही मापदंड है, तो राज्य के भीतर संघर्ष कर रहे डॉक्टरों को जानबूझकर नजरअंदाज क्यों किया जा रहा है? क्या इसलिए कि वे ‘सियासी संवेदना’ के दायरे में नहीं आते? मामले को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने सरकार पर तीखा हमला बोला है। भाजपा नेता भानु प्रताप शाही ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर वीडियो पोस्ट कर सवाल उठाया कि “मंत्री जी नियम-कानून से चलेंगे या मनमर्जी से? किस नियोजन नीति के तहत बिहार से नुसरत परवीन को बुलाकर झारखंड में स्थायी सरकारी नौकरी दी जा रही है?” उन्होंने यह भी पूछा कि जब झारखंड के बेटे-बेटियां नौकरी के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो सरकार उन्हें सीधी और स्थायी नौकरी क्यों नहीं दे रही। भानु प्रताप शाही ने आरोप लगाया कि स्वास्थ्य मंत्री तुष्टिकरण की हद पार कर रहे हैं और कहा कि झारखंड किसी एक समुदाय से नहीं बना है। उन्होंने मंत्री से अपना फैसला तत्काल वापस लेने की मांग की है।