
रांची. नहाय खाय के साथ लोक आस्था के महापर्व छठ की शुरुआत हो गयी है। आज छठ का दूसरा दिन दिन है। इसे खरना कहा जाता है। खरना का अर्थ होता है शुद्धता। नहाय खाय के दिन तन की शुद्धता पूरी की जाती है। वहीं, खरना के दिन मन और आंतरिक शुद्धता को पूरा किया जाता है। जिससे तीसरे दिन अर्घ्य देने से पहले तन और मन की शुद्धता का पूरा ख्याल रखा जा सके।
खरना के दिन छठ व्रती सूर्यास्त के बाद शाम में भोजन ग्रहण करने से पहले एकाग्रता से छठी मैया का पूजन करते है। छठी मैया का विधिवत पूजन यानी दीप प्रज्वलन, पुष्प अर्पण, सिंदूर अर्पण इत्यादि क्रम से पूजन किया जाता है। इसके बाद मीठा भोजन ग्रहण करना होता है। इसमें मुख्यतः खीर, घी लगी रोटी अथवा घी में तली पूड़ी एवं फल ग्रहण किया जाता है। इस दिन व्रती यही सब भोजन करते हैं। पूजा के समय उसी कमरे में खाने के साथ जो पानी पी सके, उसके बाद सुबह के अंतिम अर्घ्य के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करने का विकल्प होता है। मतलब, 18 नवंबर को एक बार शाम में मीठा खाना और पानी पीने के बाद सीधे 20 नवंबर को अर्घ्य देने तक महाकठिन निर्जला उपवास।
मान्यता ये भी है कि व्रती खरना की शाम में बंद कमरे में ही खरना का प्रसाद ग्रहण करते है। खरना के दौरान व्रती को किसी तरह की कोई आवाज या व्यवधान-बाधा सुनाई नहीं देनी चाहिए। मान्यता है कि किसी भी तरह का व्यवधान होने पर या आवाज सुनाई देने पर व्रती खरना का प्रसाद ग्रहण नहीं करते। और बिना प्रसाद ग्रहण किये ही व्रती का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है। इसीलिए इस दिन घर के बच्चों को भी खरना पूजन के दौरान व्रती से दूर रखा जाता है।