स्पेशल रिपोर्ट: 1932 वालो की हुंकार जीतेगी या 1985 वालो का बढ़ेगा मन, तय करेगी रामगढ़ की जनता जनार्दन, झारखंडी-गैर झारखंडी की जंग में रंगा रामगढ़ का अंग अंग
हेमंत सोरेन सरकार के द्वारा सदन से 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति पारित किये जाने के बाद ये उपचुनाव हो रहा है, इसीलिए इसका महत्त्व काफी बढ़ गया है.

रामगढ़ में विधानसभा का उपचुनाव होने जा रहा है. हेमंत के विजय रथ को रोकने के लिए भारतीय जनता पार्टी और आजसू पार्टी एक साथ चुनाव लड़ रहे है. तो वहीं, सत्तापक्ष आदिवासी मूलवासियो के फायरब्रांड हेमंत सोरेन को आगे कर चुनावी मैदान में है. हेमंत सोरेन सरकार के द्वारा सदन से 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति पारित किये जाने के बाद ये उपचुनाव हो रहा है, इसीलिए इसका महत्त्व काफी बढ़ गया है. राज्य के आदिवासी मूलवासी जिस अधिकार की मांग को लेकर लगातार आन्दोलनरत्त रहे, जिसकी मांग झारखण्ड के आंदोलनकारियों ने समय समय पर की और बदले में उन्हें शोषण मिला. आज उसी अधिकार को दिलाने के बाद हेमंत जनता की अदालत में आ गए है, हेमंत सोरेन के लगातार ऐतिहासिक फैसलों और मास्टरस्ट्रोक के बाद चित्त हुई भाजपा-आजसू इस बार हेमंत की जीत को रोकने के लिए गठबंधन करने पर मजबूर हो गयी है. हालात ऐसे है, कि भारतीय जनता पार्टी ने 2019 में जिस गठबंधन को तोड़ दिया था और लगातार चार उपचुनावों में एक भी प्रत्याशी जिस सहयोगी दल को देने का मौक़ा नहीं दिया. आज मौक़ा देखकर उसी आजसू के शर्तो को मानते हुए गठबंधन करने का फैसला कर लिया है.
1932 खतियानी लहर के बीच एनडीए की ओर से उम्मीदवार एक ऐसे नेता को बनाया गया है जिनके पति चंद्रप्रकाश चौधरी ने रघुवर कैबिनेट में रहने के दौरान मंत्री पद पर रहते हुए 1985 के आधार पर स्थानीय नीति के कटऑफ को मंजूरी दी थी. आज जयराम महतो जैसे युवा सड़को पर 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति बनाये जाने को लेकर लगातार मुखर है, ऐसे समय में झारखंडी और गैर झारखंडी की इस निर्णायक लड़ाई का रामगढ़ एक अहम् पड़ाव है, इसमें धनबल और जनबल दोनों का परीक्षण होना है. विपक्ष पर धनबल के प्रयोग का आरोप लगता आया है, पैसे से वोटो को खरीदने का आरोप खुद राज्य के मुखिया लगा रहे है. तो वहीं दूसरी ओर जनबल की शक्ति प्रदर्शन का भी यह ख़ास मौक़ा है. जब वोटो की ताकत से ये देखने को मिलेगा कि झारखंड में रहना है तो 1932 वालो की दहाड़ सुननी होगी, या 1985 वालो का मन बढ़ाना होगा. जनता जनार्दन के पाले पर गेंद डाल दी गयी है. हेमंत सोरेन ने विधानसभा से जिस 1932 खतियान की लड़ाई शुरू की, उसे रामगढ़ की जनता अब अंजाम तक पहुंचाएगी. रामगढ़ का रण 2024 में होने वाले चुनाव की रूपरेखा भी तय करेगा.