
झारखंड में बीते कुछ दिनों से “एटम बम” शब्द खूब सुर्ख़ियों में था. राज्यपाल रमेश बैस ने छत्तीसगढ़ के रायपुर में एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि पटाखे दिल्ली में बैन है, झारखंड में एकाद एटम बम फूट ही सकता है. राज्यपाल रमेश बैस और झारखंड की विपक्षी पार्टी बीजेपी को ये मालूम भी नहीं था कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी सरकार 11 नवंबर को ऐसा एटम बम फोड़ने जा रही है, जिसकी गूंज ना केवल दिल्ली तक सुनाई देगी, बल्कि इसकी गूंज से बीजेपी और हेमंत विरोधी दूसरी पार्टियों के कान के परदे फट जायेंगे. जी हां, सीएम हेमंत सोरेन ने 11 नवंबर को झारखंड विधानसभा में वो कर दिखाया जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी. राजनीतिक पंडितों से लेकर हेमंत विरोधी तक ये मान रहे थे कि बिहारियों और बाहरियों की वकालत करने वाली सरकार की सहयोगी कांग्रेस और आरजेडी 11 नवंबर को विधानसभा में 1932 का खतियान आधारित स्थानीय नीति पास होने नहीं देगी. मगर सीएम हेमंत सोरेन के मजबूत नेतृत्व और झारखंडी हितों की ऐसी आंधी चली, कि सरकार में शामिल सहयोगी दलों के साथ-साथ सरकार की विरोधी पार्टियों को भी “हेमंत शरणम् गच्छामि” के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं दिखा. लिहाजा झारखंड के इतिहास में पहली बार सत्ता पक्ष के साथ-साथ पूरा विपक्ष मुख्यमंत्री के इरादों के आगे नतमस्तक दिखाई दिया. सीएम हेमंत सोरेन ने 11 नवंबर को झारखंड विधानसभा से ना केवल झारखंडियों की पहचान यानी 1932 के खतियान का विधेयक आसानी से पास करा लिया, बल्कि जिस भारतीय जनता पार्टी के शासन के दौरान कभी ओबीसी के आरक्षण सीमा को घटा दिया गया था, उसी भाजपा की मौजूदगी में ओबीसी समाज को उसका खोया अधिकार यानी 27 प्रतिशत आरक्षण भी वापस दिला दिया. अब गेंद पूरी तरह से भाजपा और केंद्र सरकार के पाले में है, जिसके लिए दोनों विधेयक गले की हड्डी बन गए है. अगर केंद्र सरकार ने दोनों विधेयकों को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल कर लिया, तो भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक यानी बाहरी और बिहारी वोट बैंक भाजपा से बुरी तरह नाराज हो जायेगा, और अगर केंद्र सरकार इन विधेयकों को नौवीं अनुसूची में शामिल नहीं कराती है, तो झारखंड का आदिवासी-मूलवासी समाज भाजपा का पूरी तरह से बहिष्कार कर देगा.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन लगातार झारखंड और झारखंडियों के हित में ताबड़तोड़ फैसले ले रहे है, जिसने पूरे विपक्ष के तोते उड़ा दिए है. झारखंड में विपक्ष पहले से नेता और मुद्दा विहीन नजर आ रहा था, सीएम हेमंत सोरेन के इन ऐतिहासिक क़दमों ने ना केवल हेमंत सोरेन को झारखंड का सबसे बड़ा जननायक बना दिया है, बल्कि पूरे विपक्ष को अपने एटम बम की ताकत से बेदम कर दिया है. अब तो दबी जुबान ही सही, लेकिन विरोधी खेमे में भी सीएम हेमंत सोरेन की बढ़ती लोकप्रियता को लेकर एक घबराहट शुरू हो गयी है. कुछ हेमंत विरोधी तो ये भी मान बैठे है कि 2024 की नहीं, बल्कि विपक्ष को झारखंड में 2029 की तैयारी करनी चाहिए, क्योंकि 2024 में सीएम हेमंत सोरेन को टक्कर देने लायक ना तो कोई चेहरा नजर आ रहा है, ना हेमंत को घेरने लायक मुद्दे.