
झारखंड के आदिवासी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रयासों के बाद टाटा स्टील की अकड़ टूट गयी है. सालो से जिस आदिवासी अधिकारों की लड़ाई जनजातीय मूलवासी समाज टाटा स्टील से लड़ता आया, उसकी जीत हुई है. टाटा स्टील में अब झारखंड के खतियान धारी आदिवासी मूलवासी समाज के युवा ही नौकरी करेंगे. इसकी शुरुआत हो चुकी है. वर्षो से जिस लड़ाई को झारखंड का मूलवासी समाज लड़ता आया, उसको अंजाम तक पहुंचाया है मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने. एक दौर था जब टाटा स्टील में आदिवासी मूलवासियो को तवज्जो नहीं दी जाती थी. आदिवासी मूलवासी समाज को टाटा स्टील के छोटे मोटे पदों पर भी नियुक्ति के लिए लड़ाई लड़नी पड़ती थी. कॉर्पोरेट के रसूख के आगे ये लड़ाई भी कमजोर पड़ जाती थी. पूर्व की भाजपा सरकार के दौरान तो टाटा स्टील में बिहार, ओडिशा, बंगाल और छत्तीसगढ़ के लोगो को भी नियुक्त कर लिया जाता था. मगर झारखंडी खतियान धारी मूलवासी समाज के लोगो को उपेक्षा का शिकार होना पड़ता था. तब झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता चंपई सोरेन ने इस भेदभाव के प्रतिकार में टाटा स्टील के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया था. झारखंड मुक्ति मोर्चा शुरू से ही टाटा स्टील में शत प्रतिशत आदिवासी-मूलवासियो को बहाल करने की मांग करती आयी है.
सरकार बनाने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने निजी क्षेत्र की नियुक्तियों में भी झारखंड के आदिवासी मूलवासी, स्थानीय युवाओ को 75% आरक्षण देने का फैसला किया. ये फैसला टाटा स्टील की अकड़ तोड़ने में मील का पत्थर साबित हुआ. झामुमो नेताओ के लगातार आंदोलन और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सख्त रव्वैये के आगे आखिरकार टाटा स्टील को घुटने टेकने पड़े. टाटा स्टील ने 2022 में ट्रेड अप्रेंटिस की जो बहाली निकाली उससे ये साफ़ हो गया कि टाटा स्टील की गरमी मुख्यमत्री हेमंत सोरेन और समूचे आदिवासी समाज के अथक प्रयासों के आगे नरम पड़ती जा रही है. टाटा स्टील ने 2022 में ट्रेड अप्रेंटिस के पदों पर जो बहाली निकाली उसमे सौ फीसदी आदिवासी मूलवासी समाज को जगह दी गयी है. झारखंड के डोमिसाइल धारी आदिवासी ही इस बार अप्रैंटिस के पदों के लिए आवेदन कर सकेंगे. इस पद पर नियुक्ति के लिए टाटा स्टील के पास आदिवासी युवाओ के आवेदन भी पहुंच गए है. इस शुरुआत से इतना तो तय है कि आने वाले दिनों में झारखंड की धरती से कारोबार कर रही टाटा स्टील में केवल झारखंडी आदिवासी मूलवासियो को ही नौकरी मिलने का रास्ता साफ़ होता जा रहा है. वो दिन दूर नहीं जब टाटा स्टील में केवल झारखंडियों की ही नियुक्ति होगी. और यहां बाहर से आये लोग स्थानीय लोगो के अधिकारों पर डाका नहीं डाल पाएंगे.